गीत
मेरी पायलिया छम छम बोले,
काहे भेद जिया के सारे खोले।
बहके कदम ले जाएं कहां हम,
अनजानी अनदेखी डगरिया।
तन मन बस में ना दिल बस में,
हुई बैरी देखो रे अपनी उमरिया ।
मन की नदिया छल छल छलके,
कोई सुनो तो क्या क्या बोले।
काहे भेद ———-
डोरे गुलाबी हुए अंखियन के ,
ताने सहें हम सब सखियन के ।
एक पागलपन एक मदहोशी,
कजरारी बोझिल हुई री पलकें।
पुरवइया संग ऋतु मधुमासी
जीवन का अब पल पल डोले।
काहे भेद ———
अमुवा की डारी सी महकी मैं,
गीतों में मेरे घुल गए सरगम।
हुए सिंदूरी सपने सब अब तो
सपने भी प्रीत जगाएं हरदम।
बाँसुरिया बावरिया मन की,
स्वर लहरी यों मधुरस घोले।
काहे भेद ——–!
— शुभदा बाजपेयी
15/11/2015