गीत/नवगीत

गीत

इश्क़ मैं तेरे नशे में चूर होती जा रही हूँ.
मैं तुम्हें लिखते हुए मशहूर होती जा रही हूँ.

तुम सजाते गीत मेरे
भाव के उपहार से.
फिर सजाते हो मुझे भी
प्रीति के श्रृंगार से.
मैं तुम्हारे पास,खुद से दूर होती जा रही हूँ.
मैं तुम्हें लिखते हुए मशहूर होती जा रही हूँ.

ख्वाब दिन में दिख रहे अब
जग रही हूँ रात में.
आइने को देख खुद से
कर रही हूँ बात मैं.
लग रहा पाकर तुम्हें मगरूर होती जा रही हूँ.
मैं तुम्हें लिखते हुए मशहूर होती जा रही हूँ.

जी करे तुमको छुपा लूँ
प्यार के आग़ोश में.
फिर चढ़े ऐसी खुमारी
मैं न आऊँ होश में.
हर खुशी से आज मैं भरपूर होती जा रही हूँ.
मैं तुम्हें लिखते हुए मशहूर होती जा रही हूँ

ये कभी सोचा नहीं था-
एक दिन यों आएगा.
दिल न मेरा साथ देगा
और का हो जाएगा.
मैं तुम्हारे वास्ते मजबूर होती जा रही हूँ.
मैं तुम्हें लिखते हुये मशहूर होती जा रही हूँ.

अर्चना पांडा

*अर्चना पांडा

कैलिफ़ोर्निया अमेरिका