उपन्यास अंश

अधूरी कहानी: अध्याय-1:दहशत

घना अंधेरा और ऊपर से जोरों से बरसती बारिश सारा आसमान झींगुरों की किर्र-किर्र से गूँज रहा था एक बंगले के बगल में खड़े एक बरगद के पेड़ पर एक उल्लू बैठा था उसकी दौड़ती नजर इधर-उधर देख रही थी आखिर उसकी नजर एक खिड़की पर पड़ी जिसमें से रोशनी बाहर आ रही थी खिड़की से दिख रहा वह जलता हुआ लाइट छोड़कर सारी लाइटस् बंद थी।
अचानक उस खिड़की के पास सहारे के लिये बैठा हुआ कबूतरों का झुंड वहां से उड़ गया शायद उन कबूतरों को वहां किसी अदृश्य शक्ति महसूस हुई होगी खिड़की के कांच सफेद होने के कारण अंदर का कुछ दिखाई नहीं दे रहा था शायद सचमुच वहां कोई अदृश्य शक्ति पहुँच गयी थी बेड पर कोई सोया हुआ था उसका चेहरा दूसरी तरफ था इसलिए पहचानना मुश्किल था कि वह कौन था पास टेवल पर एक चश्मा रखा था तथा दारू की बोतल रखी थी और मैगजींन बिखरी हुई पड़ी थी बैडरूम का दरवाजा अंदर से बंद था उसे अंदर से कुंडी लगाई हुई थी बैडरूम में केवल एक ही खिड़की थी और वह भी अंदर से बंद थी उस सोये हुये साये ने करवट बदली अब उसका चेहरा पहचानने में आ रहा था ।
उसका नाम नानू, उम्र लगभग पच्चीस साल चेहरे पर दाड़ी के बाल और चश्मे के घेरो के निशान कुछ तो था जो नानू की तरफ बढ़ता चला जा रहा था अचानक नींद में ही नानू को आहट हुई और वह नींद से जाग गया ।उसके सामने जो भी था वह उस पर हमला करने को तैयार था इसलिए नानू के चेहरे पर डर झलक रहा था और पूरा बदन पसीने से भीग गया था बस अपना बचाव करने के लिये उठने लगा लेकिन उससे पहले उसने नानू पर हमला बोल दिया पूरे आसमान में नानू की असहाय दर्दनाक चीख गूँज पड़ी और फिर से सब तरफ सन्नाटा छा गया बिल्कुल पहले की तरह।

दयाल कुशवाह

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