बोधकथा – चतुराई
बहुत समय पहले की बात है तब कि जब बहुत हरियाली थी वन थे बहुत सारे जंगल थे ऐसे ही एक जंगल में जिसका नाम सुदर्शन वन था बहुत सारे जीव ,पंछी, शेर, चीते, खरगोश और गिलहरियाँ सभी बड़ी ही मित्रता से रहते थे । उसी वन में तीन गिलहरियाँ एक बड़े से पीपल के वृछ पर रहा करती थीं धीरे धीरे उनमें बड़ी ही प्रगाड़ मित्रता हो गयी तीनों एक दूसरे का बड़ा ख्याल रखती और तीनों का प्रेम दिन दूना रात चौगना गहराता ही गया ।
उस वन के वाकी सभी छोटे जीव ऐसी मित्रता देख कर चकित रह जाते और सोचते कि उन्हें भी मित्र मिलें तो बिल्कुल इसी प्रकार के हों ।धीरे धीरे समय व्यतीत होता गया इन तीनों में एक गिलहरी जिसका नाम नीटू था वो बहुत ही चंचल एवं चतुर थी साथ ही अल्प परिश्रम करने पर भी हमेशा ही सुखद परिणाम ही प्राप्त किया करती । कभी कभी उसकी दोनों और सहेलियाँ जिनका नाम किट्टू और टिंकी था उन्हें बड़ा आश्चर्य
भी होता कि वो तो घंटो मेहनत करती हैं तो उन्हें फल प्राप्त होता है लेकिन नीटू कम मेहनत में भी भरपूर परिणाम पा जाती है ,लेकिन वे प्रेमवश कभी भी नीटू से कुछ न कहती ।
सर्दियाँ शुरू होने बाली थी सुबह शाम की गुलाबी ठण्ड पड़ना शुरू हो गयी थी सभी पंछी एवं छोटे जीव इस बात को लेकर चिंतित थे कि भोजन का क्या प्रबंध किया जाये कि जाड़े में ज्यादा काम न करना पड़े और भोजन प्राप्त भी होता रहे ।
तभी इन तीनों ने विचार किया कि क्यों न दुपहरी के समय जंगल के भीतर जाकर के कुछ अखरोट और बादाम इकट्ठा कर अपने अपने कोटर में भर लिए जाएं और इस तरह जिन दिनों कड़ाके की ठण्ड पड़ती है सूरज तक जब सर्दियों की छुट्टी मनाने के लिए अपने घर से नहीं निकलता तो इन तीनों का समय भी आराम से व्यतीत हो जायेगा मगर नीटू को ये विचार पसंद नहीं आया वो बोली नहीं वो घने जंगल के अंदर नहीं जायेगी और फिर इतनी दूर से भोजन लेकर आये और कहने लगी कि उसे अखरोट पसंद भी नहीं हैं वो तो मूँगफली पसंद करती है और इसीलिए जब भी उसे जरूरत होगी वो पास के गाँव में जाकर किसी खेत से पकी पकी मूँगफली ले आएगी ।
तभी किट्टू और टिंकी कहने लगीं कि अगर उसे अखरोट नहीं पसंद हैं तो क्या वो अपनी दोनों मित्रों का साथ भी नहीं देगी ! कम से कम घने जंगल में साथ निभाने के लिए तो चल सकती है और भोजन लाने में कुछ मदद भी कर सकती है यदि वो चाहे तो!!! अब नीटू फ़स चुकी थी अपनी दोनों मित्रों की बातों में ऊपरी मन से ही सही उसने बड़े प्यार जताते हुए कहा अरी सखियों तुम्हारे लिए तो मैं अपनी जान भी दे दूँ मैं चलूंगी तुम्हारे साथ और इस तरह तीनों की सहमति बन गयी ।
कुछ ही दिनों के बाद नीटू की अक्सर तबियत खराब हो जाती कभी पेट दर्द तो कभी सर्दी इसलिए वो अपनी सखियों से मना कर देती कि वो नहीं आ सकेगी और फिर उसे मूँगफली लेने भी जाना होता है तो वे दोनों
मान भी जाती और कहती कि वे उसके लिए भी अखरोट बादाम ले आएंगी बो चिंता न करे ।
सर्दियाँ बढ़ने लगी थी कभी कभी सूरज भी नहीं निकलता तो भी वे दोनों भोजन एकत्र करने जाती लेकिन उनके कोटर भोजन से भर ही नहीं रहे थे दोनों बहुत ही चिंतित थी इधर नीटू का कोटर लगभग भरने पे आ गया था और वो बहुत खुश थी और ये दोनों अपने भाग्य को कोस रही थीं एक दिन बे यही बातें कर रही थी कि चिंटू खरगोश ने सुन लिया चिंटू भी पीपल के पेड़ के नीचे घर बना कर रहता था और वो भी कभी कभी भोजन एकत्र करने घने जंगल में जाता था वो तभी तपाक से बोला कि ऐसा है कल तुम दोनों भोजन एकत्र करने के लिये ठीक नियमित समय पर निकलना मगर अपने पेड़ के आस पास ही छुप कर देखना की क्या होता है ।
दूसरे दिन दोनों ने ऐसा ही किया और देखा कि नीटू बड़ी चतुराई से उनके कोटर में बारी बारी जा रही थी और भोजन सामग्री अपने कोटर में पहुँचा रही थी और उसके ऊपर मूँगफली डाल कर छुपा भी रही थी दोनों को ये देख बहुत दुःख हुआ मगर वे तीनों घनिष्ट मित्र थी इसलिए उन दोनों ने निर्णय लिया।दूसरे दिन वे दोनों उस पेड़ को छोड़ कर जाने लगी और जाते जाते चिंटू खरगोश से बिदा मांगने लगीं तो नीटू चेती बोली क्या हुआ कहाँ जा रही हो तो वे बोली की उन्होंने निर्णय लिया है कि वे घने जंगल में जहां अखरोट पड़े रहते हैं वे अब वहीँ रहेंगी इस से भोजन की समस्या खत्म हो जायेगी और कहने लगीं कि तुझे तो मूँगफली पसंद हैं तो तू यहीं पर रह और उसे छोड़ कर चली गयीं ।हमेशा के लिए ।
इसीलिए मित्रों कभी भी मित्र या अपने घनिष्ट से चालाकी न करें नहीं तो आप जीवन की अमूल्य निधि मतलब प्रेम और विश्वास ! सदैव के लिए खो देंगे ।
— अंशु प्रधान