कुछ दवा कर दो…
कुछ दवा कर दो, कि दर्द -ए- दिल बहुत बढने लगा।
शहर का हर शख्स, चेहरे पर तुम्हें पढने लगा॥
कोशिशे करता हूं, तुमको भूल जाऊं।
याद ना तुमको करूं, ना याद आऊं॥
पर ये दिल सपनें कई, गढ़ने लगा….
शहर का हर शख्स, चेहरे पर तुम्हें पढने लगा….
हर जतन करता हूं, भावों को छुपा लूं
चाहतों के शोर को, दिल में दबा लूं॥
पर दबाया जितना, ये बढ़नें लगा….
शहर का हर शख्स, चेहरे पर तुम्हें पढने लगा…..
आईना कहने लगा, मुझसे यूं हंसकर।
गुम गये जानें कहां, आंखों मे बसकर॥
ये नशा कैसा तुम्हे चढ़ने लगा….
शहर का हर शख्स, चेहरे पर तुम्हें पढने लगा…….
सोचता हूं रोज दिल की बात, तुम से बोल दूं।
जल रहा किस आग में, वो भेद सारा खोल दूं॥
तुमको पाने की तमन्ना में, दिल के सर मढ़ने लगा…..
शहर का हर शख्स, चेहरे पर तुम्हें पढने लगा……
सतीश बंसल