ग़ज़ल
भूख सबकी मिटा ही दी जाये
क्यों न रोटी भी बाँट ली जाये ।
रेत जैसे फिसल रही अब तो
जिंदगी क्यों न कैद की जाये ।
शायरी बन गई मेरी दुनियाँ
दर्द से जिंदगी थमी जाये ।
झूठ के पाँव कब टिके बोलो
बात बस लाजमी कही जाये
क्यों निहारे किसी गिरेबां को
धर्म अपनी कमी कही जाये ।
— धर्म पाण्डेय