सामाजिक

विवाहपूर्व संबंधों पर वैदिक दृष्टिकोण

शंका – आजकल विवाह पुर्व युवक युवतिया गर्लफ्रेँड ब्वाँयफ्रेँड बनाते है । इस प्रकार के अमर्यादित असमाजिक रिश्तों पर वेद क्या कहते है।
समाधान– आपकी शंका का समाधान वेदों में बहुत उत्तम प्रकार से दिया गया है। वेदों के अनुसार विवाह पूर्व सम्बन्ध वर्जित है।
 यजुर्वेद 8/11 मंत्र में लिखा है- ब्रह्मचर्य से शुद्ध शरीर,सद्गुण, सद्विद्या युक्त होकर विवाह की इच्छा करने वाले कन्या और पुरुष युवावस्था को पहुंच और परस्पर एक दूसरे के धन की उन्नति को अच्छी प्रकार देखकर विवाह करे। नहीं तो धन के अभाव में दुःख की उन्नति होती हैं। इसलिए उक्त गुणों से विवाह कर आनन्दित हुए प्रतिदिन ऐश्वर्य की वृद्धि करे।
यजुर्वेद 8/12 में लिखा है- स्त्री और पुरुष विवाह से पहले परस्पर एक दूसरे की परीक्षा करके अपने समान गुण,कर्म, स्वभाव, रूप, बल, आरोग्य, पुरुषार्थ और विद्यायुक्त होकर स्वयंवरविधि से विवाह करके ऐसा यत्न करे कि जिससे धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष की सिद्धि को प्राप्त हो। जिसके माता और पिता विद्वान न हो, संतान भी उत्तम नहीं हो सकते, इससे अच्छे और पूर्ण विद्या को ग्रहण करके ही गृहाश्रम के आचरण करे, इसके पूर्व नहीं।
यजुर्वेद के आठवें मंडल में गृहस्थ आश्रम में प्रवेश कौन करे, कब करे पर यथोचित प्रकाश डाला गया है। वेद विवाह पूर्व सम्बन्ध, समलैंगिकता, लीव-इन-रिलेशनशिप आदि सभी विकृत सोच का पुरजोर असमर्थन करते हैं क्यूं कि इनसे केवल वासना को बढ़ावा मिलता है। मनुष्य के जीवन की आध्यात्मिक उन्नति केवल नैतिक संबंध से होती है। अनैतिक सम्बन्ध से केवल अवनति होती हैं।
डॉ विवेक आर्य