लघुकथा : इरादा
उसकी सारी कोशिशे सारी जिद अनसुनी कर दी गईं। लाख सिर पटकने पर भी उसकी माँ ने उसे तैरना सीखने की अनुमति नहीं दी। मछुआरे का बेटा तैरना ना जाने , बस्ती के लोग हँसते थे पर वो डरी हुई थीं। ये समुन्द्र उनके जीवनसाथी को निगल चुका था अब वो अपने बेटे को उसके पास भेजने से भी डरती थीं।उसके साथी बच्चे जब लहरों की सवारी करते वह गुमसुम सा उन्हें देखा करता।
एक दिन शायद समुन्द्र ही उसकी उदासी से पिघल गया और ऐसा बरसा कि उसके आँगन तक पहुँच गया। उसने भी कहाँ देर की ! कूद पड़ा उथले पानी में और लगा हाथ पैर चलाने। समुन्द्र और मछुआरे का मिलन हो ही गया।
— कविता वर्मा