लघुकथा

लघुकथा : कैनवास

ट्रायपोड पर नया कैनवास लगा कर हाथ में कूची लिए वह देर तक बैठा सोचता रहा कि किस आकार और किस रंग से शुरू करूँ ? कोरे सफ़ेद केनवास पर टकटकी लगाये आँखें जाने कितने ही रंग देख रही थी। अतीत के रंग उजले, चटकीले, चमकीले, धुंधले और स्याह रंग । और अंत में सभी रंग एक दूसरे में मिल कर कभी उदासी के गहरे काले रंग में तब्दील हो जाते तो कभी आशा के उजले केनवास में लेकिन कोई आकृति अब भी उभर नहीं पा रही थी।

कितने ही दिनों से वह इस चित्र को बनाने की कोशिश में लगा था एक हँसता खिलखिलाता चित्र जो उनकी जिंदगी को खुशियों से भर दे लेकिन नाकामयाब रहा। आज वह तय करके बैठा था लेकिन मन साथ नहीं दे रहा था। तभी उसने आकर कंधे पर हाथ रखा। उसकी आँखों में निश्चय की चमक थी। वह तुरंत निर्णय पर पहुँच गया और उसके हाथ उस कोरे कैनवास पर एक मुस्कुराते बच्चे का चित्र बनाने में जुट गये , उसी बच्चे का जिसे अभी वे अनाथालय में देख कर आये थे।

कविता वर्मा

कविता वर्मा

जन्म स्थान टीकमगढ़ वर्तमान निवास इंदौर शिक्षा बी एड , एम् एस सी पंद्रह वर्ष गणित शिक्षण लेखन कहानी कविता लेख लघुकथा प्रकाशन कहानी संग्रह 'परछाइयों के उजाले ' को अखिल भारतीय साहित्य परिषद् राजस्थान से सरोजिनी कुलश्रेष्ठ कहानी संग्रह का प्रथम पुरुस्कार मिला। नईदुनिया दैनिक भास्कर पत्रिका डेली न्यूज़ में कई लेख लघुकथा और कहानियों का प्रकाशन। कादम्बिनी वनिता गृहशोभा में कहानियों का प्रकाशन। स्त्री होकर सवाल करती है , अरुणिमा साझा कविता संग्रह में कविताये शामिल।