गीतिका/ग़ज़ल

“ग़ज़ल”

आँख भर आई पास आओ तो
प्रेम का सुर मुझे सुनाओ तो |

साज़ ख़ामोश बंद आवाजें
इक सदा प्यार से लगाओ तो |

रास आ जायेगी फकीरी भी
रब से भी राबिता बनाओ तो |

दो न ताने मुझे मुफलिसी के
बीते दिन अपने भी बताओ तो |

प्रेम की अब मिले यहाँ “छाया”
अपना कहकर गले लगाओ तो |
“छाया”

छाया शुक्ला

छाया शुक्ला "छाया" प्रकाशित पुस्तक "छाया का उज़ास"

2 thoughts on ““ग़ज़ल”

  • विभा रानी श्रीवास्तव

    बहुत बढ़िया

    • छाया शुक्ला

      विभा जी
      तहे दिल से शुक्रिया !
      सादर नमन !

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