“ग़ज़ल”
आँख भर आई पास आओ तो
प्रेम का सुर मुझे सुनाओ तो |
साज़ ख़ामोश बंद आवाजें
इक सदा प्यार से लगाओ तो |
रास आ जायेगी फकीरी भी
रब से भी राबिता बनाओ तो |
दो न ताने मुझे मुफलिसी के
बीते दिन अपने भी बताओ तो |
प्रेम की अब मिले यहाँ “छाया”
अपना कहकर गले लगाओ तो |
“छाया”
बहुत बढ़िया
विभा जी
तहे दिल से शुक्रिया !
सादर नमन !