राजनीति

नीतिश को ताज, लालू को राज

(दो किश्तों में समाप्य)
(१)
दिवाली और छठ मनाने के लिए मैं करीब १२ दिन बिहार के सिवान जिले में स्थित अपने गांव, बाल बंगरा (महाराजगंज) में रहा। इस प्रवास का उपयोग मैंने बिहार-चुनाव के परिणामों के अध्ययन और समीक्षा के लिए किया। इस दौरान मैंने अलग-अलग तबकों के सैकड़ों लोगों और चुनाव में सक्रिय भूमिका निभाने वाले सरकारी अधिकारियों/कर्मचारियों से बातें की। नीतिश-लालू की शानदार जीत और भाजपा की निराशाजनक हार के पीछे जो कारण वहां के लोगों ने बताये, उन्हें लिपिबद्ध करने का प्रयास कर रहा हूं।
१. मोहन भागवत का बयान – लालू यादव एक बहुत ही चतुर राजनेता हैं। उनपर भ्रष्टाचार के आरोप सिद्ध हो चुके हैं और वे जेल भी जा चुके हैं। उनकी शुरु से ही रणनीति थी कि बिहार की जनता का ध्यान भ्रष्टाचार के मुद्दे से हटाकर जातिवाद पर केन्द्रित किया जाय। पिछड़ों को लामबंद करने के लिए ही उन्होंने नीतिश का जहर पीया और मुख्यमंत्री के उम्मीदवार के रुप में उनके नाम को स्वीकार किया। नीतिश और लालू — दोनों के लिए यह चुनाव जीवन-मरण का प्रश्न था। दोनों ने जमकर पिछड़ा कार्ड खेला। पिछले १० वर्षों से एक-दूसरे के काफी करीब आ चुके अगड़े और पिछड़ों के बीच एक चौड़ी और गहरी खाई खोदने के लिए लालू काफी कोशिशें कर रहे थे, लेकिन मोदी के राष्ट्रवाद के आगे कुछ अधिक सफल प्रतीत नहीं हो रहे थे। अचानक आर.एस.एस. प्रमुख मोहन भागवत के आरक्षण पर दिए गए बयान ने उन्हें संजीवनी प्रदान कर दी। मोहन भागवत ने वर्तमान आरक्षण-नीति की समीक्षा की बात कही थी। उनका उद्देश्य था कि इसकी समीक्षा इस तरह की जाय कि उसका लाभ उन वंचित लोगों को भी प्राप्त हो, जिन्हें अभीतक इसका कोई लाभ प्राप्त नहीं हुआ है। गलत समय पर दिया गया यह एक सही बयान था। लालू और नीतिश ने इसे लोक (Catch) लिया। वे बिहार के पिछड़ों को यह समझाने में सफल रहे कि जिस तरह सोनिया का कहा कांग्रेस नहीं टाल सकती, उसी तरह आर.एस.एस. के चीफ़ की बात भाजपा और मोदी भी नहीं टाल सकते। मोहन भागवत के समीक्षा वाले बयान का इन्होंने आरक्षण खत्म करने के रूप में प्रचारित किया। मीडिया ने भी भरपूर साथ दिया। परिणाम यह रहा कि लालू-नीतिश की जोड़ी संपूर्ण आरक्षित वर्ग (पिछड़ा+दलित) के दिलो-दिमाग में यह भ्रम बैठाने में सफल रहे कि आर.एस.एस. द्वारा संचालित भाजपा के सत्ता में आते ही आरक्षण समाप्त कर दिया जायेगा। यह भ्रम या विश्वास जनता में इतनी गहराई तक पहुंच गया कि दलितों ने राम बिलास पासवान और जीतन राम मांझी पर भी विश्वास नहीं किया। मेरे गांव के समस्त दलित समुदाय ने महा गठबंधन को ही वोट दिया। मोदी और अमित शाह ने डैमेज-कंट्रोल का काफी प्रयास किया, लेकिन तबतक चुनाव सिर पर आ गया। कुछ बुद्धिजीवी पिछड़े, मोदी से भी जुड़े रहे। मेरे गांव में लगभग ४००० मतदाता हैं। इसमें ४०% प्रवासी हैं। कुल २००० वोट डाले गए। गांव में अगड़े मतदाताओं की कुल संख्या मात्र २०० है, लेकिन भाजपा को ८०० मत प्राप्त हुए। स्पष्ट है, भाजपा ने पिछड़ों का भी मत प्राप्त किया, लेकिन जीतने के लिए पर्याप्त संख्या में नहीं।
२. स्थानीय नेतृत्व का अभाव एवं उपेक्षा – भाजपा के पास मुख्यमंत्री पद के लिए कोई प्रत्याशी ही नहीं था। चुनाव-प्रचार भी आयातित था। नीतिश ने इसे जमकर कैश किया। लोग यह कहते मिले, “मोदी दिल्ली से बिहार के चलइहें का? आम जनता में, चाहे चाहे वह सवर्ण हो या पिछड़ी, नीतिश कुमार की छवि एक साफ-सुथरे नेता और सुशासन बाबू की है। लालू की दागी छवि पर नीतिश की अच्छी छवि हावी रही। पूरे बिहार में दो ही नेताओं के कट-आउट, बैनर और संदेश लगे थे – नीतिश कुमार और नरेन्द्र मोदी के। जनता ने स्थानीय नेतृत्व पर भरोसा जताया। यह बीजेपी की रणनीतिक विफलता थी।
३. टिकट बंटवारे में गड़बड़ी – Party with a difference का नारा देने वाली पार्टी से यह बोधवाक्य पूरी तरह गायब था। सभी भाजपाई लोकसभा की तरह ही मोदी-लहर के प्रति पूरी तरह आश्वस्त थे। भाजपा का टिकट, मतलब जीत पक्की। जाहिर है, ऐसे में टिकट पाने के लिए भीड़ तो बढ़ेगी ही और गुणवत्ता भी प्रभावित होगी। टिकट-वितरण में भाजपा ने गुणवत्ता को तिलांजलि दे दी। जिताऊ प्रत्याशी के नाम पर तरह-तरह की धांधली की गई; कुबेरों, बाहुबलियों, दागियों और रिश्तेदारों को सर्वोच्च प्राथमिकता दी गई। कुछ बानगी, अपने जिले से दे रहा हूं —
(अ) दुरौन्धा विधान सभा (जिला सिवान) क्षेत्र – यहां से भाजपा के प्रत्याशी थे — जितेन्द्र सिंह। इनके पिता समीपवर्ती महाराजगंज क्षेत्र से राजद और जनता दल (यू) से कई बार विधायक और सांसद रह चुके हैं। वे एक प्रख्यात बाहुबली थे। उनके पुत्र जितेन्द्र जी उनसे कई कदम आगे हैं। उनपर हत्या और लूट के कई मामले चल रहे हैं। पिछले साल ही ६-७ साल की सज़ा भुगतने के बाद ज़मानत पर छूट कर आए हैं। आते ही चुनावी दंगल में कूद पड़े और कांग्रेस के टिकट पर महाराजगंज संसदीय क्षेत्र से भाग्य आजमाया। मोदी की लहर में ज़मानत ज़ब्त हो गई। इसबार उन्होंने दुरौन्धा विधान सभा क्षेत्र से (इसी क्षेत्र में मेरा भी गांव आता है) भाजपा का टिकट पाने के लिए पानी की तरह पैसा बहाया। दिल्ली में बैठे हिन्दुस्तान के ठाकुरों के तथाकथित स्वयंभू नेता भारत के गृहमंत्री ने ठाकुरों को टिकट दिलवाने में अपने प्रभाव का भरपूर इस्तेमाल किया। जितेन्द्र सिंह को टिकट मिल गया और ४० साल से भाजपा का झंडा ढो रहे जिला भाजपा अध्यक्ष योगेन्द्र सिंह का टिकट कट गया। योगेन्द्र सिंह राम जन्मभूमि आन्दोलन में जेल गए थे, श्रीनगर के लाल चौक में तात्कालीन भाजपा अध्यक्ष मुरली मनोहर जोशी के आह्वान पर तिरंगा फहराने के लिए कश्मीर जाते समय जम्मू में गिरफ़्तार किए गए थे, एक महीना जेल में भी रहे थे। उनका संपर्क घर-घर में है। आर.एस.एस. भी उनको टिकट दिए जाने के पक्ष में था। वे एक साफ-सुथरी छवि वाले, कर्मठ और ईमानदार जन नेता के रूप में पूरे क्षेत्र में प्रसिद्ध हैं लेकिन राजनाथ सिंह के आगे किसी की नहीं चली और एक दलबदलू दागी को भाजपा ने टिकट दे दिया। जितेन्द्र सिंह को स्थानीय जनता ‘जनमरुआ’ (हत्या करनेवाला) के नाम से जानती और पुकारती है। चुनावी दंगल में उन्हें मात मिली। इस टिकट ने पूरे जिले में भाजपा के उम्मीदवारों की चुनावी जीत की संभावना को प्रभावित किया।
(ब) महाराजगंज विधान सभा क्षेत्र – पहले मेरा घर इसी विधान सभा क्षेत्र में आता था। नए परिसीमन में दुरौन्धा में चला गया। महाराजगंज शहर से सटे पूरब में मेरा गांव है। यहां से देवरंजन सिंह भाजपा के प्रत्याशी थे। पेशे से वे डाक्टर हैं। जनसेवा करके वे आसानी से जनता में अपनी पैठ बना सकते हैं, लेकिन सामन्तवादी प्रवृत्ति के धनी देवरंजन जी अपनी बिरादरीवालों को छोड़, किसी और को प्रणाम भी नहीं करते हैं। उनकी एकमात्र योग्यता यह है कि वे पूर्व केन्द्रीय मंत्री और बिहार भाजपा के पूर्व अध्यक्ष सी.पी. ठाकुर के दामाद हैं। रिश्तेदारों को टिकट देने का खामियाजा भाजपा को भुगतना पड़ा। जनता ने उन्हें ठुकरा दिया।
(स) रघुनाथपुर – इस क्षेत्र से भाजपा ने अपने निवर्तमान विधायक विक्रम कुँवर का टिकट काटकर बाहुबली और दागी छवि वाले मनोज सिंह को टिकट दिया। विक्रम कुँवर क्षेत्र के लोकप्रिय नेता हैं और कई बार विधायक रह चुके हैं, परन्तु वे भी राजनाथ सिंह की पसंद नहीं थे। भाजपा ने यह सीट भी गँवा दी।
बड़हरिया विधान सभा क्षेत्र में भी भाजपा ने एक दागी बाहुबली के भाई को टिकट दिया। परिणाम वही – ढाक के तीन पात।
विधान सभा चुनाव में बिहार की भाजपा “Party with a difference” की छवि खो चुकी थी। लोग इस नारे को दुहराकर हँस रहे थे।
—– शेष अगले अंक में

बिपिन किशोर सिन्हा

B. Tech. in Mechanical Engg. from IIT, B.H.U., Varanasi. Presently Chief Engineer (Admn) in Purvanchal Vidyut Vitaran Nigam Ltd, Varanasi under U.P. Power Corpn Ltd, Lucknow, a UP Govt Undertaking and author of following books : 1. Kaho Kauntey (A novel based on Mahabharat) 2. Shesh Kathit Ramkatha (A novel based on Ramayana) 3. Smriti (Social novel) 4. Kya khoya kya paya (social novel) 5. Faisala ( collection of stories) 6. Abhivyakti (collection of poems) 7. Amarai (collection of poems) 8. Sandarbh ( collection of poems), Write articles on current affairs in Nav Bharat Times, Pravakta, Inside story, Shashi Features, Panchajany and several Hindi Portals.