~कन्धा ~
आंख चुराते हुए
हाथों से अपने
मुहं छुपाते हुए
बोल रहा था वो
इतनी ज्यादा
मोटी हो रही हैं
कौन ढ़ोंयेगा इन्हें
कंधो पर अपने
बीबी इशारा
करते हुए बोली
बूढ़ी भले ही हैं
माँ तुम्हारी पर
कान बड़े तेज हैं
धीरे बोलो तनिक
लेंगी सुन तो
ज़ायदाद से
हो जाओंगे बेदखल
सुनकर भी मैंने
अनसुना कर दिया |
आकर कमरे में
विफर पड़ी
बूढ़ी माँ
बुढऊ पर अपने
तुम मर गये
छोड़ मुझे मझधार
बेटे समझते है भार
तुम्हारी बात टाल रही हूँ
ज़ायदाद सारी मैं
विधवा आश्रम में
दान कर रही हूँ
शरीर की भी
नहीं करवानी हैं दुर्गति
इसे भी मैं अभी ही
रुग्णालय को
दान कर रही हूँ
जिन्हें कंधो पर बैठा
बड़ा किया हमने
उनके कंधो का हल्का
भार कर रही हूँ | सविता मिश्रा