ग़ज़ल
उस का एहसास मर गया कैसे ।
प्यार करके मुकर गया कैसे ।
आइना सच दिखाने में माहिर
टूटकर खुद बिखर गया कैसे ।
रात दिन जिसको याद करते थे
वो नजर से उतर गया कैसे ।
साथ में सच के जो खड़ा रहता
झूठ से यारो डर गया कैसे ।
‘धर्म’ दुनिया थी जिसके मुट्ठी में
हाथ खाली गुजर गया कैसे।
— धर्म पाण्डेय
बहुत खूब .