~विरोध~
पुरुष खड़ा
विरोध में
पुरुष के ही !
फैला भरम जाल
फंसी रही स्त्री।
स्त्री के आस-पास
हर अनजान पुरुष
दुश्मन होता क्यों ?
स्त्री के अपने
जाने पहचाने
पुरुष का ही!!!
सोचो तो एक बार
दिख जायेंगी
सच्चाई भी
जो छुपाई गयी हैं
स्त्री ही स्त्री की दुश्मन
शगूफ़े की आड़ में!!!!
हे पुरुष !
अब तो जागो
मकड़जाल में फांस
स्त्रियों को यूँ
अब तो न उलझाओ !
तुम्हारी ही बनाई
परिधि से निकल रही हैं
स्त्री भी अब जग रही हैं!!!!
मज्लें तो औरत ने बहुत पार कर ली लेकिन अभी भी दिली बहुत दूर है.