वो रात..
कितनी कठिन लगती है वो रात
जब नींद आंखो से उङ जाती है
बेबस और बेचारी ये पलके
झपकने को तरस जाती है
व्याकुल सा मन
करता है उथल पुथल
वक्त काटना भी
हो जाता है दुर्बल
मस्तिष्क मे परेशानीया
इतनी जकङ जाती है
कोई बताऐ भला फिर
नींद किसे आती है
असमंजस के भंवर मे ‘एकता’
अकेले ही गोते खाते है
परेशानीयो मे दबे
इक झपकी को भी तरस जाते है
बहुत खूब .
शुक्रिया सर