कविता

वो रात..

कितनी कठिन लगती है वो रात
जब नींद आंखो से उङ जाती है
बेबस और बेचारी ये पलके
झपकने को तरस जाती है
व्याकुल सा मन
करता है उथल पुथल
वक्त काटना भी
हो जाता है दुर्बल
मस्तिष्क मे परेशानीया
इतनी जकङ जाती है
कोई बताऐ भला फिर
नींद किसे आती है
असमंजस के भंवर मे ‘एकता’
अकेले ही गोते खाते है
परेशानीयो मे दबे
इक झपकी को भी तरस जाते है

*एकता सारदा

नाम - एकता सारदा पता - सूरत (गुजरात) सम्प्रति - स्वतंत्र लेखन प्रकाशित पुस्तकें - अपनी-अपनी धरती , अपना-अपना आसमान , अपने-अपने सपने ektasarda3333@gmail.com

2 thoughts on “वो रात..

  • गुरमेल सिंह भमरा लंदन

    बहुत खूब .

    • एकता सारदा

      शुक्रिया सर

Comments are closed.