कविता

आतंकवाद

आज आतंकवाद संपूर्ण विश्व के लिए चुनौती है क्षीण मानसिकता के कीट पतंगा का भयानक ज्वर का इलाज संगठितशक्तिपूर्वक करना चाहिए . ऐसे नर पिशाच को पनाह देना समर्थन करना नितांत ग़लत है ,आज पाक उसी डूश परिणाम की ओर बढ़ रहा है-

हे आतंकवाद के प्यादे
इतना क्यों हरसाते है.
तेरी अब मौत आई है.
तुझे भी खीच लाई है.
कैसा तू मूरख अंजान
ये दुनिया बहुत बड़ी है.
अजी तेरी मौत खड़ी है
दशहत गर्द बनकर तूने
बहुत ही खून बहाया है.
माँ की ममता को भूल गया
माटी का कदर न भाया
हेर -फेर के नुक्कत मे,
खुद की नाव डूबा डाला
बहुत ही खून बहाया है
सत्य असत्य का भेद न जाना
मन उल्टा पहना पयज़ामा.
कितने निष्ठुर मिले अनाड़ी
खैराती मज़हब के खिलाड़ी .
माइन्ड वास करना अब छोड़ो
मूरख मानस के- हे संपाती .
देशभक्तों आगे मूरख
तू है एक पतंगा. तेरी औकात क्या है
जो लेगा उनसे तू पंगा
करेंगे तुमको जहाँ मे नंगा .
चढ़ोगे सूली पर तुम,
लगोगे मूली सा तुम. तेरी औकात क्या है ?
मूरख तू नाली कीड़ा
कहाँ ये पाया बीड़ा,
रेंग कर मारना तुझको,
सोच लो मूरख मन को तेरी औकात क्या है ?

राजकिशोर मिश्र ‘राज’

राज किशोर मिश्र 'राज'

संक्षिप्त परिचय मै राजकिशोर मिश्र 'राज' प्रतापगढ़ी कवि , लेखक , साहित्यकार हूँ । लेखन मेरा शौक - शब्द -शब्द की मणिका पिरो का बनाता हूँ छंद, यति गति अलंकारित भावों से उदभित रसना का माधुर्य भाव ही मेरा परिचय है १९९६ में राजनीति शास्त्र से परास्नातक डा . राममनोहर लोहिया विश्वविद्यालय से राजनैतिक विचारको के विचारों गहन अध्ययन व्याकरण और छ्न्द विधाओं को समझने /जानने का दौर रहा । प्रतापगढ़ उत्तरप्रदेश मेरी शिक्षा स्थली रही ,अपने अंतर्मन भावों को सहज छ्न्द मणिका में पिरों कर साकार रूप प्रदान करते हुए कवि धर्म का निर्वहन करता हूँ । संदेशपद सामयिक परिदृश्य मेरी लेखनी के ओज एवम् प्रेरणा स्रोत हैं । वार्णिक , मात्रिक, छ्न्दमुक्त रचनाओं के साथ -साथ गद्य विधा में उपन्यास , एकांकी , कहानी सतत लिखता रहता हूँ । प्रकाशित साझा संकलन - युवा उत्कर्ष साहित्यिक मंच का उत्कर्ष संग्रह २०१५ , अब तो २०१६, रजनीगंधा , विहग प्रीति के , आदि यत्र तत्र पत्र पत्रिकाओं में निरंतर रचनाएँ प्रकाशित होती रहती हैं सम्मान --- युवा उत्कर्ष साहित्यिक मंच से साहित्य गौरव सम्मान , सशक्त लेखनी सम्मान , साहित्य सरोज सारस्वत सम्मान आदि