ग़ज़ल
आदमी का आदमी से वास्ता कोई नहीं,
हर तरफ दीवार है अब रास्ता कोई नहीं
हसरतों ने उम्र भर ना चैन ही लेने दिया,
हुई परेशानी बहुत और फायदा कोई नहीं
और सब करना मगर इश्क ना करना कभी,
वरना बचेगा जिंदगी में ज़ायका कोई नहीं
एक खामी तो हर इक इंसान में मिल जाएगी,
हैं सभी माटी के पुतले देवता कोई नहीं
ना बुरा देखो ना बोलो ना सुनो कुछ भी बुरा,
सब सलाह देते हैं लेकिन मानता कोई नहीं
वक्त बदला हो गए अपने भी सारे अजनबी,
आज मेरे शहर में मुझे जानता कोई नहीं
— भरत मल्होत्रा।