गीतिका/ग़ज़ल

ग़ज़ल

लुटा दिए आमिर, शाहरुख पर हमने अपने कोष
फिर भी उनके दिल में जागा हम सबके प्रति रोष

जिनको पलकों पर बैठाया वही गालियाँ देते हैं
समय आ गया है अब सोचो किसका कितना दोष

असहिष्णुता जिनको देश में दिखती है हर ओर
वो सेक्युलर क्यों हैं फ्रांस के हमलों पर खामोश

मुठ्ठी भर आतंकी आकर हमको आँख दिखाते हैं
महाराणा की संतानों सो गया कहां तुम्हारा जोश

भगत, सुभाष के सपनों के भारत का है बुरा हाल
महिमामंडित हैं अपराधी, मर रहे हैं निर्दोष

कहती है वीरांगना सैनिक बनेंगे दोनों बच्चे
तो क्या हुआ शहीद हो गए पति कर्नल संतोष

नायक, खलनायक में अब तो अंतर करना सीखो
जागो भारतवासियो कब तक रहोगे तुम बेहोश

— भरत मल्होत्रा।

*भरत मल्होत्रा

जन्म 17 अगस्त 1970 शिक्षा स्नातक, पेशे से व्यावसायी, मूल रूप से अमृतसर, पंजाब निवासी और वर्तमान में माया नगरी मुम्बई में निवास, कृति- ‘पहले ही चर्चे हैं जमाने में’ (पहला स्वतंत्र संग्रह), विविध- देश व विदेश (कनाडा) के प्रतिष्ठित समाचार पत्र, पत्रिकाओं व कुछ साझा संग्रहों में रचनायें प्रकाशित, मुख्यतः गजल लेखन में रुचि के साथ सोशल मीडिया पर भी सक्रिय, सम्पर्क- डी-702, वृन्दावन बिल्डिंग, पवार पब्लिक स्कूल के पास, पिंसुर जिमखाना, कांदिवली (वेस्ट) मुम्बई-400067 मो. 9820145107 ईमेल- [email protected]