गीत/नवगीत

गीत : आमिर खां के बयान पर

(आमिर खान के देश छोड़ने वाले बयान पर मेरी एक असहिष्णु कविता)

“सरफ़रोश” निकला “गुलाम” “दिल” भारत माँ का टूट गया,
तीर विषैला क्यों जुबान से आज तुम्हारे छूट गया

सवा अरब के भारत की इज़्ज़त उतार कर चले गए,
“पीके” तुमने पान चबाया पीक मारकर चले गए

“मन” में इतना मैल भरा था, आज हमें मालूम हुआ,
भारत में डरकर रहने का राज़ हमें मालूम हुआ

जब दाऊद के बम्म फटे थे, तब तुम बिलकुल डरे नहीं?
काश्मीर में शीश कटे थे, तब तुम बिलकुल डरे नहीं?

मुम्बई ट्रेन धमाके छाये तब तुम बिलकुल डरे नहीं,
सरहद से घुसपैठी आये, तब तुम बिलकुल डरे नहीं?

जब हाफ़िज़ का फ़तवा आया तब तुम बिलकुल डरे नहीं?
जब कसाब ने खून बहाया,तब तुम बिलकुल डरे नहीं?

जब पहली बीवी को छोड़ा, तब तुम बिलकुल डरे नहीं?
उस अबला का जिस्म निचोड़ा, तब तुम बिलकुल डरे नहीं?

किरण राव पर जब दिल आया, तब तुम बिलकुल डरे नहीं?
जुल्म सगे भाई पर ढाया तब तुम बिलकुल डरे नहीं?

पीके में हो बैठे नंगे, तब तुम बिलकुल डरे नहीं?
कर बैठे शिवजी से पंगे, तब तुम बिलकुल डरे नहीं,

हिन्दू का मज़ाक उड़वाया, तब तुम बिलकुल डरे नहीं,
सत्यमेव से नाम कमाया, तब तुम बिलकुल डरे नहीं?

अब डरने का क्या मतलब है, क्यों हताश “रंगीला”है?
केवल बीवी के कहने से हुआ पजामा ढीला है?

आमिर! इसी देश ने तुमको धन दौलत आराम दिया,
और तुम्हारे मुस्लिम होने पर भी ऊंचा नाम दिया

आज उसी भारत में तुमको रहना क्यों दुश्वार हुआ?
बीवी को हथियार बनाया? किसका भूत सवार हुआ?

ये “गौरव चौहान” कहे अच्छा है पाक चले जाओ,
यमन, बांग्लादेश, सीरिया या ईराक चले जाओ

भारत की गंगा है मैली, तुम जम जम का पानी हो,
तुम तो दो कौड़ी के निकले “राजा हिंदुस्तानी” हो

—–कवि गौरव चौहान