गीतिका/ग़ज़ल

यूं आज मेरे सब्र की तौहीन कर गये…

यूं आज मेरे सब्र की तौहीन कर गये।
पलकों के बांध तोड कर आंसू बिखर गये॥

शिद्दत से बहुत हमने रखा थाम के इनको।
रिश्तों की तरहा ये भी मायूस कर गये॥

जिन दामनों को हमने सदा खुशियां नवाजी।
दामन को मेरे वो ही गमसार कर गये॥

दौर इससे ज्यादा क्या होगा भला मुश्किल।
पत्तों की तरहा खून के रिश्ते बिखर गये॥

रास्ते में सच अकेला रह गया आवाक सा।
झूठ के सारे मुसाफिर अपने घर गये॥

अब सोच रहा धर्म क्या मुझसे खता हुई।
क्यूं मेरे सारे रास्ते कांटो से भर गये॥

ऐ ज़िन्दगी! कैसे तेरा वो करले ऐतबार।
अपनों की नजर में जो जीते जी ही मर गये॥

सतीश बंसल

*सतीश बंसल

पिता का नाम : श्री श्री निवास बंसल जन्म स्थान : ग्राम- घिटौरा, जिला - बागपत (उत्तर प्रदेश) वर्तमान निवास : पंडितवाडी, देहरादून फोन : 09368463261 जन्म तिथि : 02-09-1968 : B.A 1990 CCS University Meerut (UP) लेखन : हिन्दी कविता एवं गीत प्रकाशित पुस्तकें : " गुनगुनांने लगीं खामोशियां" "चलो गुनगुनाएँ" , "कवि नही हूँ मैं", "संस्कार के दीप" एवं "रोशनी के लिए" विषय : सभी सामाजिक, राजनैतिक, सामयिक, बेटी बचाव, गौ हत्या, प्रकृति, पारिवारिक रिश्ते , आध्यात्मिक, देश भक्ति, वीर रस एवं प्रेम गीत.