यूं आज मेरे सब्र की तौहीन कर गये…
यूं आज मेरे सब्र की तौहीन कर गये।
पलकों के बांध तोड कर आंसू बिखर गये॥
शिद्दत से बहुत हमने रखा थाम के इनको।
रिश्तों की तरहा ये भी मायूस कर गये॥
जिन दामनों को हमने सदा खुशियां नवाजी।
दामन को मेरे वो ही गमसार कर गये॥
दौर इससे ज्यादा क्या होगा भला मुश्किल।
पत्तों की तरहा खून के रिश्ते बिखर गये॥
रास्ते में सच अकेला रह गया आवाक सा।
झूठ के सारे मुसाफिर अपने घर गये॥
अब सोच रहा धर्म क्या मुझसे खता हुई।
क्यूं मेरे सारे रास्ते कांटो से भर गये॥
ऐ ज़िन्दगी! कैसे तेरा वो करले ऐतबार।
अपनों की नजर में जो जीते जी ही मर गये॥
सतीश बंसल