“ग़ज़ल”
नफरतों की आग में जलता मिला |
ये शहर पहले से अब बदला मिला |
हम चले थे साथ में बारात के
भीड़ में तन्हा मेरा साया मिला |
आँख भर आई दशा पर आज फिर
या खुद क्यों दोस्त भी बहरा मिला ।
हम समझते मीत ये मेरा ही है
मीत बदला घाव भी गहरा मिला |
हम चले थे मिलने को खुद से सनम
हर तरफ थीं बंदिशें पहरा मिला ।
हम समझते धडकनें तो खुद की हैं
चीर के देखा तो दिल तेरा मिला |
चाह थी “छाया” मिले मुझको घनी
राह का हर इक शजर सूखा मिला |
“छाया”