कह रहा है दिल गज़ल कोई लिखुं…
कह रहा है दिल गज़ल कोई लिखुं।
मुस्कुराता हंसता पल कोई लिखूं॥
भूल कर आघात के मंजर सभी।
चाहतों का नव कमल कोई लिखूं॥
मोड कर इस दर्द के सैलाब को।
अब मेरी मुश्किल का हल कोई लिखूं॥
छोड कर आंसू में डूबी ये कलम।
हौसलों का अपना पल कोई लिखूं॥
क्यूं तेरे बंगलों पे हैरत मैं करु।
क्यूं ना अपना घर महल कोई लिखूं॥
क्या जरूरी है इन्हें आंसू पुकारू।
क्यूं ना मोती का महल कोई लिखूं॥
सलवटें करती हैं बैचेनी बयां।
क्यूं ना रिश्तों की पहल कोई लिखूं॥
सतीश बंसल