गीतिका/ग़ज़ल

ग़ज़ल

दृग खुले रखना किसी से, प्रीत पल जाने के बाद।
जग नहीं देता सहारा, पग फिसल जाने के बाद।

चार होते ही नयन, कर लो हजारों कोशिशें,
त्राण है मुश्किल, नज़र का बाण चल जाने के बाद।

बाँध लो प्रेमिल पलों को, ज़िंदगी भर के लिए।
फिर नहीं आता वही मौसम, निकल जाने के बाद।

प्यार है अपना खरा, पर खार करता है जहाँ,
इसलिए प्रिय! अब मिलेंगे, शाम ढल जाने के बाद।

सब्र से सींचो हृदय में, प्रेम रूपी बीज को,
ख़ुशबुएँ देता रहेगा, फूल-फल जाने के बाद।

प्रेम के अतिरेक का, कैसा मिला है फल उसे,
जान पाता है कहाँ, परवाना जल जाने के बाद।

क्यों डरें हम “कल्पना” जब मीत हर-दम साथ है,
हाथ छूटेगा ये अब तो, दम निकल जाने के बाद।

— कल्पना रामानी

*कल्पना रामानी

परिचय- नाम-कल्पना रामानी जन्म तिथि-६ जून १९५१ जन्म-स्थान उज्जैन (मध्य प्रदेश) वर्तमान निवास-नवी मुंबई शिक्षा-हाई स्कूल आत्म कथ्य- औपचारिक शिक्षा प्राप्त करने के बाद मेरे साहित्य प्रेम ने निरंतर पढ़ते रहने के अभ्यास में रखा। परिवार की देखभाल के व्यस्त समय से मुक्ति पाकर मेरा साहित्य प्रेम लेखन की ओर मुड़ा और कंप्यूटर से जुड़ने के बाद मेरी काव्य कला को देश विदेश में पहचान और सराहना मिली । मेरी गीत, गजल, दोहे कुण्डलिया आदि छंद-रचनाओं में विशेष रुचि है और रचनाएँ पत्र पत्रिकाओं और अंतर्जाल पर प्रकाशित होती रहती हैं। वर्तमान में वेब की प्रतिष्ठित पत्रिका ‘अभिव्यक्ति-अनुभूति’ की उप संपादक। प्रकाशित कृतियाँ- नवगीत संग्रह “हौसलों के पंख”।(पूर्णिमा जी द्वारा नवांकुर पुरस्कार व सम्मान प्राप्त) एक गज़ल तथा गीत-नवगीत संग्रह प्रकाशनाधीन। ईमेल- [email protected]

One thought on “ग़ज़ल

  • जयनित कुमार मेहता

    वाह,कल्पना जी! बहुत ही कोमल सी खूबसूरत ग़ज़ल हुई है..

Comments are closed.