लघुकथा : नीच
माता पिता के साथ जा रही एक छह सात वर्ष की लड़की का अचानक पांव फिसला और गहरी खाई में जा गिरी। खून में लथपथ बेटी को उन्होने बड़ी मुश्किल से बाहर निकाला और निकट ही एक घर पर ले गए। घायलावस्था में अचेत लड़की को वहां कुछ लोगों ने प्राथमिक उपचार दिया और उसे होश में ले आए। लड़की ने पीने के लिए पानी मांगा तो पिता ने यह कहते हुए मना कर दिया ’’ये लोग दलित जाति से संबंध रखते हैं और हम अपनी बेटी को नीच के हाथ का पानी नहीं पिला सकते।’’
प्यासातुर घायल पुत्री को देख मां के भीतर का इन्सान जाग उठा और उसने पानी मंगवाकर पुत्री को पिलाते हुए पति से कहा ’’ये लोग समाज में भले ही दलित कहे जाते हों लेकिन नीच नहीं है, वास्तव में नीच तो आप हैं। प्यास से तड़पती अपनी बेटी से जो पानी छीन ले उस से बड़ा नीच भला कौन हो सकता है।’
— अनन्त आलोक