अगर सृजन कर……
अगर सृजन कर जाती प्रेम प्रस्फुटित कर।
सृजन-सृजित-मधुर-मिलन संगीनी बनकर।
फूलों से सुसज्जित कर हर लो मन की तपन,
प्रेम की धारा बहाकर मुझपर इतना ध्यानकर।
— रमेश कुमार सिंह /०१-१२-२०१५
अगर सृजन कर जाती प्रेम प्रस्फुटित कर।
सृजन-सृजित-मधुर-मिलन संगीनी बनकर।
फूलों से सुसज्जित कर हर लो मन की तपन,
प्रेम की धारा बहाकर मुझपर इतना ध्यानकर।
— रमेश कुमार सिंह /०१-१२-२०१५