मैं तो अभी भी हिंदी सीख रहा हूँ – प्रो. तोशियो तनाका
मैं तो अभी भी हिंदी सीख रहा हूँ – जापान के हिंदी विद्वान प्रो. तोशियो तनाका
(‘हिंदुस्तानी प्रचार सभा द्वारा हिंदी के विदेशों से पधारे विद्वानों के साथ संवाद का कार्यक्रम)
मुंबई में पधारे कई विदेशी विद्वानों के साथ चर्चा के लिए ‘हिंदुस्तानी प्रचार सभा द्वारा एक कार्यक्रम आयोजित किया गया जिसमें मुंबई के कई हिंदी सेवी, हिंदी के साहित्यकार, पत्रकार हिंदी-प्रेमी और विदेशों से आकर हिंदी सीख रहे विद्यार्थी भी सम्मिलित हुए। कार्यक्रम में अध्यक्ष पद से बोलते हुए जापान के हिंदी विद्वान प्रो. तोशियो तनाका ने सभा के विद्यार्थियों को संबोधित करते हुए कहा, ‘भाषा सीखना एक सतत् प्रक्रिया है, और मैं तो अभी भी हिंदी सीख रहा हूँ।’ उन्होंने विद्यार्थियों और उपस्थित विद्वानों के प्रश्नों के उत्तर देते हुए विभिन्न विषयों पर अपने विचार प्रस्तुत किए। श्री लंका के प्रो. उपल रंजीत ने अपने वक्तव्य की रोचक शुरुवात यह कह कर की, ‘मैं रावण के देश से आया हूँ, पर किसी का हरण करने के लिए नहीं।’ उन्होंने भारत में हिंदी अध्ययन और श्री लंका में हिंदी शिक्षण के अपने अनुभवों की जानकारी दी। कनैडा से पधारे प्रो. शरण घई ने कनैडा में हिंदी शिक्षण और पत्र-पत्रिकाओं के प्रकाशन की प्रतिकूल स्थितियों और अनुभवों से अवगत करवाया। जापान से पधारे विद्वान हिदेआँकि इशिदा तथा जर्मनी से पधारे विद्वान प्रो. विपुल गोस्वामी ने भी अपने अनुभव बांटे।
कार्यक्रम में विशेष रूप से दिल्ली से पधारे साहित्यकार सुरेश ऋतुपर्ण तथा वरिष्ठ पत्रकार विश्वनाथ सचदेव ने जापानी हिंदी विद्वान प्रो. तोशियो तनाका के जीवन के कुछ अनछुए पहलुओं को उजागर किया। देहरादून से पधारे कवि बुद्धिनाथ मिश्र ने कविता के माध्यम से अपने उद्गार व्यक्त किए। इसके पूर्व हिंदुस्तानी प्रचार सभा के ट्रस्टी फिरोज पैच ने अतिथियों का स्वागत किया और सभा कि विशेष कार्य अधिकारी डॉ. सुशीला गुप्ता ने कार्यक्रम की प्रस्तावना प्रस्तुत की। इस अवसर पर वरिष्ठ पत्रकार नंद किशोर नौटियाल, वैश्विक हिंदी सम्मेलन के निदेशक डॉ. एम.एल.गुप्ता ‘आदित्य’, साहित्यकार संतोष श्रीवास्तव आदि उपस्थित थे।
कार्यक्रम का संचालन रईस अंसारी ने किया और आभार ज्ञापन राकेश त्रिपाठी ने किया। कार्यक्रम में ‘हिंदुस्तानी प्रचार सभा की हिंदी शिक्षिका सरोजनी जैन तथा अनुसंधान अधिकारी डॉ रीता कुमार ने सहभागिता की। कार्यक्रम के आयोजन में प्रज्ञा गान्ला, रोहिणी जाधव, अपर्णा नवघणे का विशेष योगदान रहा।
विदेशों में हिंदी के दूत बनकर हिंदी का प्रसार कर रहे विद्वानों के साथ संवाद का यह कार्यक्रम न केवल रोचक था बल्कि ज्ञानवर्धक भी था।