कहानी

गुलमोहर!!

कैलाश गुलमोहर की जड़ों में पानी दे रहा था कि तभी बगल बाले घर में रहने बाले सरजू चाचा घर से निकले और कैलाश को देख बोल पड़े …..ओ रे कैलाश जे गुलमोहर में काहे पानी दे रओ है अब कौन जे हरो होंवे बालो देखत नहीं जड़ तक सूख आओ। कैलाश की तन्द्रा टूटी तो पलट के मुस्कुरा दिया और बोला अरे चाचा बस ऐसे ही! जब बगीचे के सभी पेड़ पौधे पानी पी रहे तो जे गुलमोहर ही काहे रह जाये। अचानक मनोहर जो की सरजू चाचा का लड़का है और कैलाश का दोस्त भी बोल पड़ा अरे तेरी बाँह में पट्टी कैसी कैलाश कल तो तुम बिल्कुल सही थे तो कैलाश बताने लगा कि कल कचेहरी में हाथापाई हो गयी उसके दमाद और उसके बीच….इसी बीच सरजू चाचा टहलने को आगे बढ़ गए थे और मनोहर कैलाश को अपने घर ले गया जबरदस्ती। मनोहर कैलाश की मनोस्थिति से भलीभांति बाक़िफ था और जानता था की कुछ हुआ है कैलाश के साथ लेकिन कैलाश अपने मन की बात किसी को नहीं बताएगा।

दिसंबर की सर्दी में कैलाश के हाथ पानी का पाइप पकडे रहने की बजह से ठन्डे से हो गए थे इसीलिए मनोहर ने तुरंत एक बीड़ी सुलगाई और बढ़ा दी कैलाश के आगे साथ ही अपनी बिटिया मिताली को फरमान भी सुना दिया ..अरे बिटिया मिताली! ….जरा कैलाश चाचा के लिए दो कप चाय तो बना ला। और मिताली हाँ पापा! कह के बैठक तक आके वापस चली गई थी।

मिताली को देखते ही कैलाश टूट सा गया और कह बैठा अपने मन की व्यथा की मनोहर तू मेरी एक बात गाँठ बांधले बता मानेगा कि नहीं!!!
मनोहर एक दम चौंक सा गया! बोला हाँ हाँ बता! …बता तो सही क्यों नहीं मानूँगा, तू कुछ बोल तो मेरे भाई!! तेरा उदास चेहरा देख मेरा दिल जलता है।

कैलाश- “मनोहर देख तू वादा कर तू अपनी बिटिया का व्याह तभी करेगा जब वो अपने पैरों खड़ी हो जाये ये जमाना बहुत बुरा है रे मनोहर बहुत बुरा ऊपर से कुछ नज़र आये और अंदर से कुछ ….” और कैलाश की आँखें डबडबा आई जिसे कैलाश ने नीची निगाह करके अपने गमझे से धीरे से पोछ लिया।

कैलाश ने अपनी बेटी पूनम की शादी अभी एक वर्ष पहले बड़ी धूम धाम से की थी अच्छा सरकारी नौकरी में लगा लड़का मिल गया था।सारे काम बड़े अच्छे से हुए सब बड़े खुश थे लेकिन चार महीने बाद ही घर में क्लेश चालू हो गया था। देवेन्द्र कैलाश का दमाद पूनम को घर भेज गया था ये बोल के की तुम्हारी लड़की में वो गुण नहीं जैसी उसे चाहिए और कैलाश हक्का बक्का सा रह गया था और फिर न तो वो बापस लेने आया न उसके ससुराल बालों ने ही कोई खबर ली ….. इसपे खिसिया के कैलाश ने मुकद्दमा कर दिया था धीरेन्द्र के ऊपर, तो सब घर और खिसिया गया।

मनोहर कहने लगा कैलाश से- “देख भाई अपनी बिटिया है तू फिक्र काहे करता है क्या एक बिटिया न पाल सकेगा तू!”

कैलाश- “पाल क्यों न लूँगा मनोहर जरूर पाल लूँगा लेकिन ये समाज ससुराल से भेजी गयी बेटियों को कब इज्जत से देखता है बस यही डर खाये जाता है मुझे। ये बेटियां भी गुलमोहर के पेड़ के जैसी हो जाती हैं जो अपनी लालिमा से घर भर देती हैं लेकिन गुलमोहर के फूल न तो भगवान् पर चढ़ाये जाते हैं न इनमें खुशबू ही होती है।”

मनोहर- “अरे का पगला गया है बेटी की तुलना गुलमोहर से कर रहा है? जो बात तू मुझसे कह रहा है वो ही खुद पे लागू कर भूल जा कि पूनम की शादी की थी तूने और उसे किसी लायक बना. फिर देख घर चल के तेरी बेटी का हाथ थामने बाले न आएं तो मेरा नाम बदल देना।” और कैलाश तभी जैसे किसी मनोबल से उठ खड़ा हुआ था और बोला हाँ तुम सही कह रहे हो मनोहर हाँ ….मेरा दिमाग भटक गया था।

आज दो साल हो गए हैं पूनम डाक विभाग के कार्यालय में अधिनस्थ के पद पर कार्यरत है और उसी विभाग का वरिष्ठ संजीव पूनम से विवाह करना चाहता है।

आज दरवाजे का गुलमोहर भी हरा हो गया है और लाल फूलों से लदा पड़ा है और मनोहर और कैलाश गुलमोहर के ही नीचे खड़े बतिया रहे हैं तभी मनोहर कहता है- “अब ये तेरी समझ है कि गुलमोहर के फूल भगवान् को नहीं चढ़ाते ले आज जितने चाहे फूल भगवान् को अर्पण कर ….वे कुछ न कहेंगे” और दोनों हँसने लगते हैं।

अंशु प्रधान