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बस! एक कश

सूत्रधार, “आज की युवा पीढी कल का उगता सूरज है । पर एक काला शाया तेजी से हमारे समाज के इस उगते सूरज को अपनी आगोश में लेता जा रहा है । क्या आप सोच सकते है वह क्या है ??? जी हाँ!!!! नशा !!!नशे का काला शाया तेजी से हमारे समाज की युवा पीढी को अपने गिरफ्त में कशता जा रहा है। पर कैसे ??? आइये ! उसी को समझने के प्रयास में देखते है एक लघु नाटिका — बस ! एक कस”

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अनमोल : Hello! Whatsup…?

अर्पित : I am fine …but… य़े पी आई एल समझ नहीं आ रहा, यार…

अनमोल और अर्पित एक दूसरे के साथ किताब लेकर कुछ डिसकस कर ही रहे थे कि मोनू और का काजल भी आ गये ।

काजल और मोनू एक साथ : hello! Gays ….

काजल अर्पित के हाथ से किताब छिनते हुए, : जब देखों तब किताबों में उलझा रहता है ।

मोनू काजल से : अरे काजल तेरा पेपर कैसा गया ।

काजल : मेरा पेपर बहुत अच्छा गया । मेरा पेपर खराब जा ही नहीं सकता…

मोनू : पागल ! तेरी तो बैक आयी है… बैक..

काजल: तू पागल है ! मेरे 86% न. आये है …

मोनू: तेरी बैक आयी है, काजल, तू तो गयी…फेल! हाँ.., हाँ.. अर्पित से पूछ ले….

अर्पित : हाँ ! काजल तेरी बैक ही आयी है । हार्ड लक यार..

काजल : तुम दोनों का दिमाग ही चल गया है । मेरा पेपर बहुत अच्छा गया था । शायद चैक करने वाले को चैक करना ही न आया हो । चैक करने वाले की ही गलती होगी । ये बता तेरे कितने नम्बर आये।

मोनू : मेरे तो 100 में से 100 नम्बर आये है ।

काजल : चल चल फेकू…सकल देखी है, अपनी..

अनमोल : चलों कोई बात नहीं अब लडाई मत करो ।

अर्पित और मोनू एक साथ : अच्छा .. ठीक है… जब रिजल्ट आ जाए तो हमें भी बता देना….

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अर्पित : Good morning mam !!

अध्यापिका : Good morning Arpit !!!

अर्पित : मैम , मझें एक डाउट है ।

अध्यापिका : बोलो अर्पित….

अर्पित : मैम! ये पी. आई. एल. क्या होता है ।

अध्यापिका : P I L…. Public Interest Litigation… मतलब जन हित याचिका… जन हित याचिका सार्वजनिक हित की रक्षा के लिए सुप्रिम कोर्ट के द्वारा की गयी एक व्यवस्था है ।

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सूत्रधार, “पर क्या ये खुशियाँ- ये सपने हमेशा उनके साथ रह पाएगा । देखा न ये सभी युवा विद्यार्थी कितनी ताजगी के साथ कॉलेज की इस नयी दूनिया में आये है । चलों! अर्पित को ही लेते है । (अर्पित की तरफ इसारा करते हुए।) अर्पित ने 90% अंकों के साथ 12वी की परीक्षा पास की । अपने भविष्य को लेकर उसे भी काफी उम्मीदे है । उसका तो सपना ही एल.एल.बी कर समाजिक अधिकारों के लिए लडने वाले वकिल बनने का है। पर नियती में क्या लिखा है, आईये!!!! आगे देखते है… ”

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राहुल: चल भाई ! तु क्या पढाई-वढ़ाई में लगा रहता है। थोड़ा पार्टी सार्टी में भी चला कर ।

अर्पित : नहीं भाई ! मझु तो पढ़ाई करनी है ।….मैम ने सोमवार तक असाइनमेंट जमा कराने के लिए कहा है ।

तभी उधर से अंजली काजल को लेकर आती है ।

काजल : अरे ! चल न अर्पित । अभी तो रिजल्ट भी नहीं आया .. रिजल्ट तो आ जाने दे ..फिर पढ़ लियों ।

अंजली : अरे चल ना,,,,… कितना नाटक कर रहा है…. तू । अरे मोनू भी आयेगा।

राहुल : चल भाई ,,,, तुझें जन्नत की सैर करा..उगा । थोडा बाहर भी घुमा -फिरा कर…

पार्टी का दृष्य

तेज आवाज मे संगीत बज रहा है ।

पार्टी में युवा एन्जॉय के नाम पर विवध तरह का नशा कर रहे है । वे अर्पित को भी प्रेरित करते है । अर्पित पहले मना करता है । फिर धीरे धीरे कश लेने लगता है । लेने के बाद शुरू में अजिब सा महसूस होता । बाद में उसको भी मज़ा आता है । पर धीरे-धीरे अन्य युवाओं की तरह

उसे भी आदत हो जाती है ।

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सूत्रधार, “कहानी सिर्फ अर्पित की नहीं । काजल अंजली मोनू राहुल,……….. इन सब ने आशा की उडान भरते हुए ही कॉलेज में दाखिला लिया है । इनके माँ बाप ने भी क्या-क्या उम्मीदें है । इन सबों ने भी न जाने क्या क्या सपने देखे थे । कोई पढाई में अवल था तो कोई खेलों में धुर्धर । ……… राहुल का तो गिटार ही नहीं छुटता था । पर एक बार जो नशे के चुगल में फस गया… सणझों वो गया । बस थोडे से मजे के लिए जिन्दगी तबाह कर ली । देखिएं आगे क्या होता है ।”

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(अब आप देखियें कि एक बार नशे के चुगंल में फस जाने के बाद युवा  किस किस तरह के अपराध करते है ।)

अर्पित : शुरू -शुरू में तो बड़ा मज़ा आता था,.. यार ।…….. लेकिन… अब तो आदत सी हो गयी है । बिना इसके,, अब मैं,,,, जी भी नहीं सकता ।

राहुल : अबे फोकट का थोडे,, नSS.. आता है ।…. पैसे लगते है …. पैसे..

अर्पित : पैसे कहा है,,, यार । पापा ने जो फिस के पैसे दिये थे वो भी इस पार्टी में चले गये ।

काजल : कल …मेरे हाथ तो पापा का पर्स लग गया था ।…लेकिन आज तो मेरे पास भी कुछ नहीं है ।

राहुल : तू मेरे साथ चल,,,,.. तुझें…. मैं पैसे  में नहला दूगा ।

अर्पित : ऐसा क्या काम है…. भाई!

राहुल : बस तुझें इधर का माल उधर करना है ।….. और नये लड़के लड़कियों को ….. इस धंधे में लाना है ।…. देखता जा,,, तुझें पैसे से नहला दूगां…

अर्पित : …ओह.! तूने… सिर्फ पैसे के लिए,, हमें ये आदत डाली… अब इस धंधे में लेकर आया….

अंजली : इस काम के लिए तो बाहर से भी.. बहुत .. बहुत…. पैसा…..आता है । इंटरनेशनल डिलिंग भी होती है । बडे – बडे नेताओं……. बिजनेसमैन … से लिंक बनते है………

राहुल : …….. और लिंक से ही तो काम बनते है…पैसे आते है। वरना इस पढ़ाई वढ़ाई में क्या रखा है।… वैसे भी हिन्दी-उर्दू मीडियम में पढ़ने वालो का… कोई कैरियर ही नहीं होता, भाई । तू सुप्रीमकोर्ट में जाकर हिन्दी में प्रेक्टिस करेगा????

काजल : चलो… कल से हम भी तुम्हारे साथ चलेगें … हाँ.. बोल न अर्पित … मेरे सारे पैसे खतम हो गये….आखिक कब तक.. पापा के पर्स से पैसे चुराउ..गी।

राहुल: पढ़ाई वढ़ाई में क्या रखा है ????….दो नम्बर के काम में ही पैसे है पैसे………

काजल: हाँ. .. हाँ.. .. कल से हम भी तुम्हारे साथ चलेगे… हाँ!.. बोल न अर्पित

अर्पित : चलो… ठीक है……कल से हम भी तुम्हारे साथ चलेगे… अब …. क्या चारा.. बचा ….है ।

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सूत्रधार, “आखिर क्यों ये नशा हमारी युवा पीढी को तेजी से निगलता जा रहा है ? आखिर क्यों हमारा युवा वर्ग जीवन की वास्तविकताओं से मुहँ मोड रहा है । समाज की गति और परिवर्तन के प्रतिक ये युवा क्यों राह से भटक रहे है ? समाज के साथ सामंजस्य बैठाने के स्थान पर क्यों ???, ये सिर्फ क्पोल क्लपनाओ में जी रहे है । ”

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तभी पुलिस का सायरन बजता है…. पुलिस आती है…

पुलिसइंस्पेक्टर : (कडक आवाज में) क्या हो रहा है यहाँ पर.. खडे हो जाओं।

राहुल : जिन्दगी के मजे लिए जा रहे है….जिन्दगी,,, के मजे….

पुलिस इंस्पेक्टर: हवालात की हवा खाएगा… सारे मजे निकल जाएगे।

पुलिस हवलदार: सर यहाँ तो स्मैक और गाँजे की भी गधं आ रही है ।

पुलिस इंस्पेक्टर: (चरों तरफ निगाह दौड़ा कर)  चैक करो…

हवालदार : हटो… चैक करने दो ।

राहुल: अरे क्या कर रहे हो,,,,

काजल: .. जानती नहीं मेरे बाप को …वो तेरे को डिसमिस करा देगा…. डिस….मिस ।

पुलिस हवालदार : (गस्से में ) सर. अब इंनको जिंदगी के मजे हवालात में ही दिलाएगें….

पुलिस इंस्पेक्टर: अरे नहीं !..नहीं !…ये भी हमारे ही बच्चे है । पुलिस का काम हवालात में बन्द करना ही नहीं, बल्कि राह भटके हुए लोगों को सही रास्ता भी दिखाना है । अपराध का रास्ता तो… वन वे है ।.. जो एक बार गया फिर वह लोट कर नहीं आता । … ये नशे का जाल ही हमारे युवाओं को राह भटकाने के लिए है…………

हवालदार: तो सर! इन्हें नशा मुक्ति केन्द्र ले चले ।

पुलिसइंस्पेक्टर: हाँ ! अब तो बस यह ही एक चारा है ।… पर,,, काश ! ये बच्चे नशे के शिकार न बने होते ..

पुलिस उन्हें नशा मुक्ति केन्द्र ले जाने के लिए उठाती है ।…

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सूत्रधार, “क्या उगता सूरज चमकने से पहले ही डूब जाएगा । ये कहानी किसी एक युवा की नहीं है । न ही किसी कॉलेज विशेष की ही । ये कहानी तो नशे के शाये की है जो जो हमारे समाज को तेजी से अपने गिरफ्त में कशता जा रहा है । युवा अवस्था में एक बार जो नशे का ग्राहक बन गया ,….. , वह ता-उम्र उसका दास रहेगा। …काश, ये बच्चे नशे के शिकार न बने होते ”

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सभी विद्यार्थी एक साथ , “ काश! हम नशे के शिकार न हुए होते ।” (तीन बार)

पर्दा गिरता है…

 

अश्विनी कुमार 'सुकरात'

अश्विनी कुमार 'सुकरात' फेसबुकएवं एवं वाट्सअप संपर्क करने हेतू फोन 9210473599, 9990210469 जन भाषा – जन शिक्षा – जन चेतना – जन क्रांति अभियान ‘इंग्लिश मीडियम सिस्टम’ = काले अंग्रेजों का‘अंग्रेजी राज’ = ‘भ्रष्टाचार’, ‘शोषण’, ‘गैरबराबरी’ की व्यवस्था पर ‘साँस्कृतिक ठप्पा’ https://www.facebook.com/khan.aslam.sukratun , [email protected], [email protected]

2 thoughts on “बस! एक कश

  • अश्विनी कुमार

    धन्यवाद

  • गुरमेल सिंह भमरा लंदन

    जो भारत हम ५० साल पहले छोड़ कर आये थे ,वोह इतहास ही बन गिया है . आज तो हम यहाँ पर भारत से पछड़े हुए लगते हैं किओंकि भारत तो अब बहुत आगे चले गिया है . इतना नशा तो यहाँ हमारे यूथ भी नहीं करते .

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