गीत/नवगीत

कब अच्छे दिन आयेंगे

जिसको देखो पूछता है वो कब अच्छे दिन आएँगे
कब हम घर में बैठकर अपने दूध-मलाई खाएँगे

लेकिन हम ये भूल गए कि जबतक हम ना सुधरेंगे
कैसे अपने वर्तमान हालातों से हम उबरेंगे

मंज़िल ना आएगी चलके हमको चलना पड़ता है
स्वर्ग में जाना है तो पहले खुद को मरना पड़ता है

बात करो ना तकदीरों की मेहनत करने वालों से
लिखते हैं नसीब वो अपने हाथ-पाँव के छालों से

पसीने से जीवन की बगिया को महकाना पड़ता है
कर्मों की मिट्टी में अपना खून मिलाना पड़ता है

फूल कामयाबी के खिलते हैं तब जीवन में अपने
परिश्रम से ही पूरे हो सकते हैं अपने सब सपने

दूसरे लोगों पर पहले इल्ज़ाम लगाना बंद करो
औरों को हर बात का दोषी तुम ठहराना बंद करो

 

छोटे-छोटे कदम उठाकर मंज़िल को पाना होगा
खुद नहीं आएँगे अच्छे दिन हमें उन्हें लाना होगा

— भरत मल्होत्रा

*भरत मल्होत्रा

जन्म 17 अगस्त 1970 शिक्षा स्नातक, पेशे से व्यावसायी, मूल रूप से अमृतसर, पंजाब निवासी और वर्तमान में माया नगरी मुम्बई में निवास, कृति- ‘पहले ही चर्चे हैं जमाने में’ (पहला स्वतंत्र संग्रह), विविध- देश व विदेश (कनाडा) के प्रतिष्ठित समाचार पत्र, पत्रिकाओं व कुछ साझा संग्रहों में रचनायें प्रकाशित, मुख्यतः गजल लेखन में रुचि के साथ सोशल मीडिया पर भी सक्रिय, सम्पर्क- डी-702, वृन्दावन बिल्डिंग, पवार पब्लिक स्कूल के पास, पिंसुर जिमखाना, कांदिवली (वेस्ट) मुम्बई-400067 मो. 9820145107 ईमेल- [email protected]

2 thoughts on “कब अच्छे दिन आयेंगे

  • अब तक अच्छे दिन नहीं आये तो अब क्या आयेगें
    काम नहीं करेंगे वो सब सिर्फ दिल में समा जायेगें
    चेहरे दिखाने के लिए वो सब दरवाजे तक आयेगें
    जब आयेगा भोट का चक्कर तब अपना बन जायेंगे
    हुआ अगर कहीं समारोह तुरन्त भाग कर आयेगे
    सिर्फ दिखावा दिखाकर चन्द लफ्ज कह कर जायेंगे
    चुनाव अगर आ गया तो रैली पर रैली दिखाने आयेगे
    झूठे वादो झूठी कहानियाँ लोगों को सुनाकर जायेंगे
    हुआ अगर कोई घटना तो घोषणा करने चले आयेगे।
    घोषित को पाने के लिए उनके यहाँ तक दौड़ जायेंगे ।

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