ग़ज़ल
जिद ना कर बात मान रहने दे,
पुरखों का मकान रहने दे
हर नई चीज़ नहीं है बेहतर,
कुछ पुराने निशान रहने दे
चमक-दमक से चकाचौंध ना हो,
तलवार देख तू म्यान रहने दे
थाम ले हाथ मेरा हाथों में,
बाकी सारा जहान रहने दे
इतनी भी दिल्लगी नहीं अच्छी,
कुछ तो दिल में गुमान रहने दे
मेरी यादों के जखीरे में तू,
थोड़ा अपना सामान रहने दे
भरोसा कर मेरी वफाओं का,
इश्क का इम्तिहान रहने दे
— भरत मल्होत्रा
सरल शब्दों में बेहतर कथन ! बढ़िया ग़ज़ल !!