हाइकु कविताएं
ऊँघता चाँद
प्रभात की चौखट
खोजता माँद।
टूटती शाख
सहेजे अपनों के
सपने खाक।
बरखा बूँद
खेतो में रचे छंद
बाली में गूँथ ।
भोर का तारा
दे जाता हर रोज
नया सहारा।
भोर परिंदा
बुनता दिनभर
रात घरोंदा।
यथार्थ परे
मिल जाते दो दिल
भावार्थ झरे
वक़्त की मार
अपने कर जाते
तीखे प्रहार।
बैरन रात
जुदा होके तुझसे
भीगे जज्बात
पीर फुहार
सुख की कतरन
रिश्ते फरार
साँझ अकेली
चन्दा सूरज तारे
रात पहेली।
दीप शिखाएँ
कर जाती रोशन
घोर निशाएँ।
गुंजन
वाह गुँजन जी, बहुत उम्दा हाइकु।