गीतिका/ग़ज़ल

गज़ल

गज़ल

आस का दीपक जलाया देर तक
ख़्वाब दिल को यूँ दिखाया देर तक।

बन के आँसू आँख से ग़म बह चला
हमने दिल में था छुपाया देर तक।

मेरी तन्हाई नहीं देखी गई
साथ बैठा मेरा साया देर तक।

नूर हर ज़र्रे में कोई भर गया
‘माहे कामिल मुस्कुराया देर तक’

बस गया है दिल में मेरे इस कदर
ख़्वाब ने मुझको रुलाया देर तक।

साथ साया बन चला वो उम्र भर
क्या हुआ फिर क्यों न आया देर तक।

खो गई परवाज़ पंखों की मेरे
वक़्त बंदिश में बिताया देर तक।

चाव उसको जिंदगी का है बहुत
आँसू में जो मुस्कुराया देर तक।

चैन दिल को तो मिला है यूँ सदा
जब भी रोते को हँसाया देर तक।

अनिता मंडा