ग़ज़ल
मेरी खामोश मुहब्बत की निशानी तू है ।
हमारे जख़्म की उलझी सी कहानी तू है ।।
जब भी देखी तेरी तश्वीर क़यामत आयी।
कैसे कह दूँ कि मेरी आँख का पानी तू है ।।
दर्द की इम्तहाँ बन करके गुजरती अक्सर ।
मेरे ख़्वाबों की महकती सी जवानी तू हैं ।।
मैकदे में तो बहुत जाम हैं लेकिन साकी ।
होश आए न वो शराब पुरानी तू है ।।
बड़ी मासूमअदाओं से कत्ल की साजिश ।
मेरी कातिल मेरी नज़र में शयानी तू है ।।
खिजां ज़ालिम है हसरतों के उड़ गए पत्ते।
फ़िजा ए शक्ल में मौसम की रवानी तू है ।।
न इंतजार का आलम तू पूछ अब मुझसे ।
न मुकद्दर में हो वो शाम सुहानी तू है।।
कोई अफ़साना लिखू या लिखूँ .ग़ज़ल तेरी ।
दरमियाँ इश्क जमाने की जुबानी तू है ।।
— नवीन मणि त्रिपाठी