शगुन
आजकल मंहगाई जिस तरह से अपनी चरम सीमा पर है ,हर कोई इससे प्रभावित नज़र आता है ।इस कमर तोड़ मंहगाई की अगर बात करें तो उसमें कहीं ना कहीं हमारी भी कुछ हिस्सेदारी है ।
आज अगर हमारा बजट डगमगा जाता है ,उसका कहीं ना कहीं कारण हमारे द्वारा बड़ाए गए रीति रिवाजो के नाम पर फिज़ूल खर्च भी हैं ।आजकल जिस तरह से शादी समारोह में दिल खोल कर खर्च किया जा रहा है वहीं शगुन के नाम पर घर- घर में कलह भी हो रही है ।एक दूसरे की हौड़ और देखा देखी में इन यादगार समारोह का वो लुत्फ वो मज़ा नहीं आ रहा ।जब भी घर में किसी शादी का निमंत्रण आता है पहले ही घर वालों की चिन्ता बड़ जाती है कि शगुन क्या देना है ।यह लेन देन इतना हावी हो चुका है कि अपनी गुंजाइश ना होते हुए भी यहाँ वहाँ से अपनी झूठी शान बड़ाने के लिए इसे ज्यादा से ज्यादा बड़ाकर या उस रिशते के लिहाज़ से भुगतान करना पड़ता है ।माना यह प्रथा तो पुरानी चली आ रही है जब शगुन के नाम पर अपने आशीर्वाद की तरह बड़े छोटों को या किसी अपने को दिया जाता था पर आजकल शादी समारोह में एक दूसरे की तरफ देखकर या रिशते के लिहाज़ से अपनी पहुंच से बाहर भी दिया जा रहा है ।इस तरह से शगुन प्यार की जगह कहीं ना कहीं देने वाले को एक बोझ सा भी प्रतीत होने लगा है !!!
कामनी गुप्ता ***