ग़ज़ल
अँधेरा रात का और दिन का उजाला ढूँढ़े
तुझे हर जगह तेरा चाहने वाला ढूँढ़े
तेरे दीदार को पागल दिल-ए-बेताब मेरा
तेरी तस्वीर हो जिसमें वो रिसाला ढूँढ़े
तेरी बिखरी हुई यादें समेटने के लिए
ज़हन मेरा कोई जज़्बात का ताला ढूँढ़े
ख्वाब होंगे अमीरी के दुनिया जीतने के मगर
भूख की नज़र तो हर वक्त निवाला ढूँढ़े
अपनी खताएँ रब के सर पे डालने के लिए
कोई मस्जिद तो कहीं कोई शिवाला ढूँढ़े
— भरत मल्होत्रा
बहुत अच्छी गजल !