चतुष्पदी
तुम्हारी आहट को सुनकर—- गुनगुनाया।
तुम्हारी आवाज़ को परखकर- मुस्कुराया।
हर अदाओं को रखने की कोशिश किया मैं,
लेकिन हो बहुत दूर यह सुनकर मुरझाया।
@रमेश कुमार सिंह/०१-१२-२०१५
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मैं दुखी हूँ इस—– जहां से।
करता है मन चल दूँ यहाँ से।
इस दुनिया में नहीं है- रहना,
फंस गया आ के हम कहाँ से।
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धुप न रही—– छांव न रहा।
गम न रही—– याद न रहा।
वो चलती रही, मै चलता रहा।
वो आती रही—मैं जाता रहा।
रमेश कुमार सिंह
२४-१०-२०१५
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कहाँ छोड़कर~~~वो चली।
खिली मिली थी~~ वो कली।
हँसीं देकर मेरे~~~हृदय में,
किस पथ पर~~~ वो चली।।
@रमेश कुमार सिंह
०५-१०-२०१५
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