मेरी कहानी 85
दिसंबर 1966 में मुझे PSV लाइसैंस मिल गिया था और मेरे साथ रोज़ रोज़ नए नए कंडक्टर आते थे। कई दफा हफ्ते दो हफ्ते के लिए भी किसी कंडक्टर को मेरे साथ बुक कर देते थे। उन दिनों सड़क पर कारें कम हुआ करती थीं और बसें बहुत बिज़ी होती थी। बस सर्विस बहुत होती थी। चार चार पांच पांच मिनट बाद बसें चलती थी ,फिर भी दो छतों वाली बसें होने के बावजूद भी बसें भरी रहती थी और कंडक्टर को बार बार तीन घंटीआं बजानी पड़ती थी कि ड्राइवर बस को कहीं खड़ी न करे। लोगों की शकायतें आती ही रहती थीं ,जिस के लिए हमें mr. butlar के दफ्तर में आ कर सफाई पेश करनी होती थी। वोह गुस्से में हमारी कोई बात नहीं सुनता था और हमारा ही कसूर निकालता था और अक्सर कहा करता था कि “जो लोग यहां कंपलेंट करने आते हैं ,वोह अपना समय निकाल कर आते हैं , उनके दिमाग खराब नहीं हैं जो इतनी दूर रिपोर्ट करने आते हैं। “.
यह मेरा भागय ही था कि मुझे सिर्फ एक दफा ही उस के सामने पेश होना पड़ा और यह कंपलेंट इतनी सीरीयस भी नहीं थी। एक दफा कंडक्टर ने तीन घंटीआं बजा दी थी कि बस भरी हुई थी और मैं आगे के बस स्टॉपों पर बस को खड़ी न करूँ। किसी ने मेरी रिपोर्ट कर दी थी कि ऊपर की छत पर चार पांच सीटें खाली थीं और मैंने जान बूझ कर बस खड़ी नहीं की थी। बटलर ने बहुत बोला था और मैं चुप रह कर सुनता रहा। यहां तक मुझे याद है सारी उम्र इस के बाद मुझे किसी भी मैनेजर के सामने पेश नहीं होना पड़ा ,सिर्फ तब ही पेश होता था जब कोई एक्सीडेंट होता था क्योंकि इसमें इंशोरेंस और क्लेम की बातें होती थीं। आठ नौ घंटे रोड पे रहने के कारण एक्सीडेंट होते ही रहते थे और मेरे भी बहुत हुए थे लेकिन मेरा कभी भी कोई कसूर नहीं हुआ था और जब मैंने काम छोड़ा था तो मेरा लाइसैंस बिलकुल क्लीन था।
1980 के बाद तो हर साल मैनेजमैंट की ओर से हमें पार्टी दी जाती थी और उस में सेफ ड्राइविंग अवार्ड दिए जाते थे , मैडल और सर्टिफिकेट मिलते थे। पहले मैनेजिंग डायरैक्टर सारे साल की रिपोर्ट और अचीवमेंट पड़ कर सुनाता था , इस पर खूब तालिआं बजती थीं और इस के बाद मैडल और सर्टीफिकेट मैनेजिंग डायरैक्टर हर एक को स्टेज पर हाथ मिला कर देता था और तालिआं खूब बजती थीं और फोटो लिए जाते थे। हर साल अवार्ड मिलने से मेरे पास बहुत से मैडल और सर्टीफिकेट जमा हो गए थे ,घर में कहाँ पड़े होंगे याद ही नहीं लेकिन उन मैडलों की याद अब लिखते समय ही आई है। यह पार्टी बहुत कलरफुल होती थी। इस में बीअर पीने के लिए मैनेजमैंट की तरफ से फ्री टोकन दिए जाते थे, जिन को कैश करा के हम काउंटर से बीअर लेते थे।
मैनेजिंग डायरैक्टर इंस्पैक्टर और सभी सीनियर इंस्पैक्टर बीअर पीते पीते हमारे साथ घुल मिल जाते थे, और हम उन से खुल कर बातें करते थे ,खाने बड़े बड़े टेबलों पर सजे होते थे जिन में अंग्रेजी खाने और इंडियन खाने होते थे। हमारे खानों में अक्सर पकौड़े ,समोसे, स्प्रिंग रोल, टिक्कीआं मीट करी ,छोले और कबाब होते थे। अँगरेज़ लोग हमारे खानों पर टूट पड़ते थे ,प्लेटें भर भर के ले जाते थे। खूब पेट भर कर खाते थे। कुछ लोगों की पत्नीआं और बच्चे भी साथ होते थे। आखिर में डांस होता था जो रात देर तक चलता रहता था। हमारे लड़के अंग्रेज़ों की पत्निओं के साथ डांस कर के बहुत खुश होते थे क्योंकि उन के पतिओं को कोई माइंड नहीं होता था। बाद में बहुत फ़ूड बच जाती थी और कोई फ़ूड घर ले जाना चाहे तो ले जा सकता था। हमारे लोग अंग्रेजी फ़ूड उठा लेते थे और गोरे हमारी इंडियन फ़ूड ले जाते थे। यह पार्टी बहुत मज़ेदार होती थी।
एक दिन सुबह के समय मैं दूध की बोतलें उठाने घर के बाहर निकला। लोहे की तार से बना एक केस होता था जिस में बारह दूध की बोतलें रखी जा सकती थीं और मिल्क मैंन सुबह नौ दस वजे से पहले पहले हर घर के सामने नया दूध की बोतलों का केस रख जाता था और पुराना जिस में खाली बोतलें होती थीं ले जाता था। दूध की बोतलें तीन पर्कार की होती थीं ,एक का ढकन सिल्वर रंग का होता था जिस को सिल्वर टौप बोलते थे और इस में क्रीम कुछ कम होती थी क्योंकि कुछ लोग सिहत के लिए और वज़न कम करने के लिए इस को अच्छा समझते थे, दुसरी होती थी गोल्ड टौप जिस में फुल फैट मिल्क होता था और तीसरी होती थी बलिऊ टौप जिस से केवल चाय ही बनाई जाती थी। इस से चाय बहुत अच्छी बनती थी और चाय ज़्यादा देर पडी रहने पर भी ऊपर सकिन या छिकडी नहीं बनती थी।
हर मिल्क मैंन के पास एक ओपन बैक वैन होती थी ,जिस पर चालीस पचास दूध के केस रखे होते थे। यह वैन बैटरी से चलती थी और इस की स्पीड बहुत स्लो और पांच मील घंटे की रफ़्तार से धीरे धीरे चलती थी। दूध सप्लाई करके मिल्क मैंन दूध वाली डेरी में वैन को खड़ी करके उस की बैटरी चार्ज करने के लिए प्लग को सॉकेट में लगा देता था। उन दिनों चोरीआं नहीं होती थी। हफ्ते बाद जब मिल्क मैन दूध का हिसाब करके पैसे लेने आता था तो बहुत दफा हम घर पर नहीं होते थे ,इस लिए पैसों का हिसाब करके, एक लफाफे में डाल कर बाहर ही दरवाज़े पर बोतलों के साथ रख देते थे , कोई दूसरा आदमी उठाता नहीं था। अगर पैसे कम या ज़्यादा होते तो मिल्क मैन हिसाब करके बाहर ही बोतल के नीचे रख जाता था। वोह ईमानदारी के दिन अब एक सपना बन कर रह गए हैं। अब तो चोरीआं इतनी बड़ गई हैं कि घरों को अलार्म लगे हुए हैं।
मिल्क मैंन दूध रख गिया था .जब मैं बोतलों का केस उठाने लगा तो दो बोतलें एक तरफ को सलिप हो कर गिर गईं और टूट गईं .मन अपसेट हो गिया .मैंने सड़क की एक ओर देखा ,दूध वाला अभी ज़िआदा दूर नहीं था .मैं दूध वाले के पास पौहुंचा तो वोह एक नया मिल्क मैंन था .मैंने उस को बताया कि दो बोतलें टूट गईं और अब दो और मुझे दे दे .उस ने दो बोतलें दे दीं और मैंने उस से पुछा कि पहले वाला मिल्क मैंन किया छुटी पर था जो नहीं आया ,तो वोह बोला कि उसको काम से जवाब हो गिया था किओंकि उस की कम्प्लेंट बहुत आती थीं . मुझे यह सच ही लगा किओंकि हमारे साथ भी उसने कुछ गलत काम किये थे ,लगता था उस की याददाश्त इतनी अच्छी नहीं थी किओंकि कई दफा वोह ज़िआदा चेंज दे जाता था और कई दफा ज़िआदा चार्ज कर लेता था .
मैंने दूध वाली डेरी के मैनेजर को एक चिठ्ठी लिखी थी . यह डेरी तकरीबन चालिस वर्ष पहले की बंद हो चुक्की है .इस का नाम होता था midland counties dairy .यह डेरी पैन रोड और पैन फील्ड रोड के कोने पर होती थी और इस जगह अब macdonald बना हुआ है . जब मैंने मैनेजर को चिठ्ठी लिखी थी तो मैनेजर मेरे घर आया था और मेरी शकाएत सुनी थी और मिल्क मैंन पर एक्शन लेने का भरोसा दिया था . इस मिल्क मैंन के बताने से भरोसा हो गिया कि वाकई मैनेजर ने उस मिल्क मैंन पर एक्शन लिया था . अब मैं सोचता हूँ कि काश यह इंडिया में भी हो जाए ताकि लोगों को अच्छी सर्विस मिल सके . दूध ला कर मैंने चाय बनाई और टेबल पर आकर पीने लगा . तभी बाहर पोस्ट मैन ने लैटर होल में से चिठिआं फैंक दीं. मैं उठ कर चिठीआं उठा लाया ,एक तो होने जा रही बीवी की थी और दुसरी पिता जी की। चाय की चुस्कीआं लेते लेते मैंने पिता जी की चिठ्ठी खोली ,जिस में उन्होंने शादी के बारे में कुछ बातें लिखी हुई थीं।
दूसरा खत बीवी का था और इस में भी शादी का ही ज़िकर किया हुआ था। खतों में अब बहुत बातें होने लगी थीं लेकिन यह खत ऐसे होते थे जैसे एक साधारण गाँव की लड़की लिखती है। बात बात पर जी शब्द का प्रयोग और मुझ से कुछ डरा डरा सा होना ,एक ऐसी मासूमियत थी जो उस समय बहुत भली लगती थी। यह मासूमियत शादी के बाद भी बहुत सालों तक रही थी लेकन वकत के साथ साथ वोह सपना ही बन गई है। अब तो हमारा झगड़ा भी कभी कभी हो जाता है लेकिन शादी के 48 साल बीत जाने के बाद भी हमें कोई मालूम नहीं है कि हम किस बात को ले कर कभी झगडे थे। यह नोंक झोंक तो हर मिआं बीवी में होती ही रहती है लेकिन अगर सीरीयस ना हो तो इस में कोई हैरानी वाली बात भी नहीं होती। सोचता हूँ बचपन को सभी याद करते हैं और वोह बचपन की बातें कभी भूलती भी नहीं। इसी तरह शादी से पहले और कुछ साल बाद के वोह दिन भी कभी नहीं भूलते क्योंकि उस समय तो दोनों हवा में ही उड़ते रहते हैं। जब बच्चे हो जाते हैं तो हवा में तो किया उड़ना जमींन पर चलने के लिए भी नियम बनाने पड़ते हैं।
गियानी जी अपने बैड रूम में से निकल कर नीचे आ गए। मैंने उन्होंको बताया कि मेरी शादी की तारिख पक्की हो गई थी। गियानी जी ने बोला कि मैं ट्रैवल एजेंट के पास जा कर सीटें पक्की करा आऊँ। गियानी जी की बात सुन कर मैं काम पर जाने से एक घंटा पहले घर से चल पड़ा। ट्रैवल एजैंट के पास पौहंचा तो वहां कोई ख़ास रश नहीं था। ट्रैवल एजैंट एक पटेल था। अफगान एअर लाइन की सीट के बारे में मैंने उस को दो सीटें बुक करने को बोला । किराया मेरा खियाल है उस समय तकरीबन डेढ़ दो सौ पाउंड रिटर्न होता था। पटेल जिस को हम भइया कहते थे ,ने अमृतसर की दो सीटें बुक कर दीं लेकिन यह फ्लाइट लंडन हीथ्रो एअरपोर्ट से नहीं जाती थी बल्कि गैटविक एअरपोर्ट से जाती थी। डेट का मुझे याद नहीं लेकिन मेरा अंदाजा है यह मार्च के आखिर में ही होगी क्योंकि जब हम अमृतसर एअरपोर्ट पर उतरे थे तो काफी गर्मी थी।
सीटें बुक करा के मैं काम पर चला गिया। मेरा और जसवंत का काम अब होता था कपड़े खरीदना। शनिवार को ही हम को शॉपिंग का वक्त मिलता था। उन दिनों मार्क्स ऐंड स्पैंसर और वूलवर्थ ही सब से बड़ीआ स्टोर होते थे। इस के इलावा वुल्वरहैम्पटन में एक और स्टोर बीटीज़ होता था जिन में इन में से भी ज़्यादा एक्सपैंसिव चीज़ें होती थीं। बीटी एक ऐसा शख्स था जिस ने इस स्टोर को शुरू किया था और मरने से पहले अपना सारा पैसा स्टोर में काम करने वालों के नाम कर गिया था। मैं और जसवंत ने मार्क्स ऐंड सपैंसर में से बड़ीआ गर्म सूट लिए , कमीज़ें लीं ,मफलर लिए और अच्छे हैट लिए जिस पर हम बाद में हंसा करते थे। जीऊलरी शॉप h . saimual जिन की दुकाने उस वक्त सारे इंगलैंड में होती थी में से घर वालों को देने के लिए गिफ्ट लिए। उन दिनों मेरी बहन भी अफ्रीका से आई हुई थी। उसको ले कर एक दिन मैं बीटीज़ में गिया और अपनी अर्धांगिनी के लिए कीमती कपडे और ज्यूलरी खरीदी।
पता ही नहीं चला ,यह कुछ महीने कैसे बीत गए। चिठिआं लिखते लिखते वक्त का पता ही नहीं चला। हम दोनों मिआं बीवी प्लैनिंग बना रहे थे कि मेरे इंडिया आने पर शादी से पहले शॉपिंग करने के लिए कहाँ कहाँ जाना था और पहले दिन हम ने कहाँ मिलना था। हमने फैसला किया था कि जीटी के रेलवे लाइन के फाटक के नज़दीक साइकल वाले की दुकान के नज़दीक मिलेंगे। यह रेलवे का फाटक धैनोवाली गाँव से एक दो फर्लांग पर ही है। बीवी को मैंने बता दिया था कि मैं धूम धाम से शादी पसंद नहीं करता था और ना ही ज़्यादा बरातिओं से मेरी इतनी दिलचस्पी थी। मेरी बीवी कुलवंत धूम धाम से सब कुछ करना चाहती थी लेकिन मैं अपनी ज़िद पे था। बाद में वोह भी मान गई थी। फिर वोह दिन भी आ गिया जब मैने लिख दिया था कि अब यह मेरा आख़री खत होगा और गाँव पहुँचने के दूसरे दिन ही मैं फाटक पर मिलूंगा। काम पर मैंने नोटिस दे दिया था और साथ में यह भी लिख दिया था कि इंडिया से आ जाने के बाद मैं यहां ही काम करूँगा।
मैं और जसवंत अपने अटैचीकेस और बैग ले कर ट्रेन स्टेशन पर पहुँच गए। गियानी जी स्टेशन तक साथ आये थे। हम ने टिकट लिए और ट्रेन में बैठ गए। रास्ते में कई दफा हम ने अपने टिकट और पासपोर्ट चैक किये ,हम दोनों का सभ कुछ मेरे चमड़े के बैग में ही था। तीन घंटे बाद हम लंदन पैडिंगटन स्टेशन पर पहुँच गए। बाहर निकल कर शायद हम ने वूलिच के लिए अंडरग्राउंड ट्रेन ली और वूलिच पौहंच गए। वूलिच मेरी बहन बहनोई और बच्चे कुछ देर पहले ही अफ्रीका से आये थे। वूलीच में बहनोई सेवा सिंह के माता पिता जी रहते थे। देर रात तक हम बातें करते रहे। सुबह को रविवार था। बहनोई साहब और उन के बहनोई करनैल सिंह हम दोनों को कार में बिठा कर गैटविक एअरपोर्ट की तरफ चलने लगे।
जब एअरपोर्ट पर पहुंचे तो पता चला कि फ्लाइट तो कैंसल हो चुक्की थी और उन्होंने हमें लैटर भी डाला था ,लेकिन हमें तो लैटर मिला ही नहीं था। निराश हो कर हम ने सामान क्लोक रूम में जमा करा दिया और वापिस वूलिच आ गए। मूड ऑफ हो गिया था और हम जल्दी सो गए। सुबह को बहनोई और करनैल सिंह ने तो काम पर जाना था ,इस लिए मैं और जसवंत अकेले ही टैक्सी ले कर एअरपोर्ट पहुँच गए। चैक इन पर हम ने अपना सामान जमा करवाया और मैं टॉयलेट चले गिया। जब मैं वापस आया तो जसवंत वहां नहीं था। मैं हैरान हो गिया कि कहाँ गिया होगा। कुछ देर बाद जसवंत के साथ एक पुलिस मैन आ रहा था। जसवंत ने मुझ से पासपोर्ट और टिकटों के बारे में पुछा तो मैंने अपने बैग से निकाल कर उस को पकड़ा दीं। जसवंत ने पुलिस मैंन को पकड़ा दीं। पुलिस मैन ने सभी कुछ चैक करके ओके कह दिया और चले गिया।
जसवंत ने बताया कि वोह उसे इलीगल इमिग्रैंट समझते थे और पुलिस ने उस के कपडे तक उतार लिए थे। जसवंत मुझे बताने लगा कि उस ने पुलिस वालों को बताया भी था टिकटें और पासपोर्ट उस के दोस्त के पास था लेकिन वोह मानते ही नहीं थे। जसवंत काफी अपसैट हो गिया था। कुछ देर बाद अफगान एअरलाइन का जहाज़ रनवे पर आ गिया था और धीरे धीरे सभी लोग हाथों में बैग पकडे जहाज़ की ओर जाने लगे। जब जहाज़ में बैठ गए तो कुछ देर बाद ही जसवंत ने दो पैग्ग डबल विस्की के आर्डर कर दिए। रिलैक्स हो कर हम बैठ गए और सब कुछ भूल कर हम विस्की पीने लगे। अब जहाज़ ने भी इतनी लम्बी उड़ान भरी कि दूसरे दिन सुबह काबल एअरपोर्ट पर जा कर ही लैंड हुआ। हमारा जहाज़ सामान उतार कर तो कहीं और चला गिया और हम एक दूसरे जहाज़ की इंतज़ार करने लगे जो लाहौर से आना था और इस में बैठ कर ही हम ने अमृतसर पहुंचना था ।
चलता. . . . . . . .
मनमोहन जी ,धन्यवाद .यहाँ कस्टमर का बहुत खियाल रखा जाता है .ताज़ा उधाहरण लिखूं ,मेरी पत्नी मेरे लिए लाएब्रेरी से किताबें ला कर देती हैं .कुछ समय से पत्नी अपसेट हो कर आती है कि हम ने वक्त पर किताबें वापस नहीं कीं ,इस लिए हम को फाइन देना पड़ेगा ,जब कि किताबें हम वक्त पर वापस करते हैं . मैंने मैनेजर को इमेल के ज़रिये शकाएत लिखी और उस का जो जवाब आया मैं कापी पेस्ट कर रहा हूँ . काश यह इंडिया में हो जाए .
Dear Mr Bhamra
Thank you for your email about Whitmore Reans library. I am sorry to hear that your wife was upset when she visited Whitmore Reans library. We take all comments from our users very seriously and I will certainly look into this matter for you.
I will contact the staff at Whitmore Reans library and ask them about the fine. I will email you again, once I know more details. Please ask your wife not to worry.
Regards
Annie Owen
Principal Libraries Manager (SouthWest) & Children`s & Outreach Services
मनमोहन जी ,धन्यवाद .यहाँ कस्टमर का बहुत खियाल रखा जाता है .ताज़ा उधाहरण लिखूं ,मेरी पत्नी मेरे लिए लाएब्रेरी से किताबें ला कर देती हैं .कुछ समय से पत्नी अपसेट हो कर आती है कि हम ने वक्त पर किताबें वापस नहीं कीं ,इस लिए हम को फाइन देना पड़ेगा ,जब कि किताबें हम वक्त पर वापस करते हैं . मैंने मैनेजर को इमेल के ज़रिये शकाएत लिखी और उस का जो जवाब आया मैं कापी पेस्ट कर रहा हूँ . काश यह इंडिया में हो जाए .
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नमस्ते आदरणीय श्री गुरमेल सिंह ही। आज की कथा पूरी पढ़ी। बहुत अच्छी लगी। विदेश में ग्राहक संतुष्टि को महत्व दिया जाता है, यह पढ़कर भी अच्छा लगता है। भारत में लोगो के संस्कार इस कदर बिगड़ चुके हैं कि यहाँ इसकी कभी उम्मीद नहीं की जा सकती। राजनीतिक दलों को वोटऔर कुर्सी चाहिए। इसके लिए नो आवश्यक हो वह करने को तैयार रहते हैं। देश की जनता को भी इन विषयों में कोई विशेष रूचि नहीं रहती। कई दलों के व्यवहार से ऐसा स्पष्ट दीखता है कि उन्हें देश व समाज के हितो की कोई चिंता नहीं है। यहाँ तो समाज हित की बात करना भी कई बार ऐसा लगता है कि हम अपनी भड़ांस ही निकाल रहें है। भारत में आपके विवाह की तारीख निश्चित हो गई है। आप भारत पहुँच रहें हैं। आपका स्वागत एवं विवाह की शुभकामनायें। सादर।
आपकी किस्त पढकर बहुत आनंद आया। आपसे कभी कोई बड़ी गलती नहीं हुई और आपको ढेरों मैडल भी मिले। यह आपकी कर्तव्यपरायणता का सबूत है। बहुत बहुत बधाई।
आपके विवाह के पूर्व की कहानी भी रोचक लग रही है।
विजय भाई , धन्यवाद . हा हा ,अब कहानी कुछ रुमांटिक हो जायेगी .