गीत/नवगीत

न्यायालय का फ़ैसला

कैसा उच्च न्यायालय का फैसला आया आज
मानेगा अब कौन यहां पर है कानून का राज

खंडित हुई है आस्था और बिखर गया विश्वास
भैंस चरा के ले गया लाठी थी जिसके पास

किसी मुकद्दमे की किस्मत में सालों का इंतज़ार
और किसी का फैसला आने में लगते दिन चार

पद, ताकत, प्रसिद्धि को नहीं किसी का भय
बोलो मिलकर मेरे साथ सब रूपया देव की जय

भरी सभा में हो गया देखो द्रोपदी चीरहरण
फिर से रावण ने किया सीता माता का अपहरण

समाज के ठेकेदारो चुल्लू भर पानी में डूब मरो
न्याय नहीं दे सकते तो फिर ये नौटंकी बंद करो

वंचितों और गरीबों की कौन सुनेगा चीख यहां
लड़कर लेना होगा हक नहीं मिलेगी भीख यहां

अब भी वक्त है संभल जाओ बंद करो मनमानी
जनता भड़क उठी तो फिर तुम माँगोगे ना पानी

जाग गए ये शोषित तो सत्ता की नींव हिला देंगे
इस सड़ी हुई व्यवस्था की तब ईंट से ईंट बजा देंगे

— भरत मल्होत्रा


 

*भरत मल्होत्रा

जन्म 17 अगस्त 1970 शिक्षा स्नातक, पेशे से व्यावसायी, मूल रूप से अमृतसर, पंजाब निवासी और वर्तमान में माया नगरी मुम्बई में निवास, कृति- ‘पहले ही चर्चे हैं जमाने में’ (पहला स्वतंत्र संग्रह), विविध- देश व विदेश (कनाडा) के प्रतिष्ठित समाचार पत्र, पत्रिकाओं व कुछ साझा संग्रहों में रचनायें प्रकाशित, मुख्यतः गजल लेखन में रुचि के साथ सोशल मीडिया पर भी सक्रिय, सम्पर्क- डी-702, वृन्दावन बिल्डिंग, पवार पब्लिक स्कूल के पास, पिंसुर जिमखाना, कांदिवली (वेस्ट) मुम्बई-400067 मो. 9820145107 ईमेल- [email protected]