बीज हौसलों के बोता हूं, उम्मीदों की धरती पर..
फूल चढा कर श्रृद्धा के, बीती बातों की अर्थी पर।
बीज हौसलों के बोता हूं, उम्मीदों की धरती पर॥
रोज नया दिन नया सवेरा आस नई उम्मीद नई।
रोज जगाता हूं हृद्य में सत्कर्मों की सोच नई॥
रोज नया स्वर भरता है दिल एक नई आवर्ती पर….
बीज हौसलों के बोता हूं, उम्मीदों की धरती पर….
हर पल बढना पग पग बढना जीवन का है सार यही।
शिथिल हुआ जो इस जग में समझों डूबा मजधार वही॥
मिलता नही है मौका अगला गलत की पुनरावृत्ति पर…
बीज हौसलों के बोता हूं, उम्मीदों की धरती पर……
रखता नही सहेज, निराशा के पल अपने जीवन में।
अलख जगाता हूं नव संघर्षों के उद्वेलित मन में॥
नजर कडी रखता हूं दिल की चपल चलित प्रवर्ती पर…..
बीज हौसलों के बोता हूं, उम्मीदों की धरती पर…..
कलुषित भाव मिटाकर सब, नव सन्दर्भो के भाव लिये।
चलता हूं जीवन पथ पर हर कदम नवल संभाव लिये॥
अडिग रहा हूं और रहूंगा मूल्यों की आकृति पर….
बीज हौसलों के बोता हूं, उम्मीदों की धरती पर…….
सतीश बंसल