माँ
ज़िंदगी का पहला सबक तुमसे ही सीखा था !
माँ तुम ही मेरी पहली गुरू थी ,
क्योंकि बात करना भी तुमसे ही सीखा था !
क्या सही क्या गल्त तुमसे ही सीखा था !
तुम्हारी डाँट ने ही सुधारी हैं मेरी तमाम गल्तियां !
ज़िंदगी के पहले झूठ की नाराज़गी में ,
सच का क्या महत्व है मैने यह समझा था !
जब भी कोई गल्ति करूं तुम्हारी सीख याद आती है !
वही तो मुझे जीने की राह दिखाती है !
मेरी पहली गुरू हो तुम तुम्हें भूल कर भी नहीं भूल सकता !
क्योंकि रिशतो की अहमीयत है क्या तुमसे ही सीखा था !!!
कामनी गुप्ता ***