ग़ज़ल : हर कोई मौकापरस्त…
मुसाफिर बदहवास तलाश मंजिल की क्या करूं ,
चल रही साँस है नहीं किसी की आस , क्या करूं.||
बजते स्वरों से कान दुश्मनों के खड़े हुए ,
नेताओं से परेशान झूठ सच का प्रमाण, क्या करूं ||
रंगत ए वतन बहुत नाजुक हुई आजकल
स्वार्थ की शिनाख्त शिकायत भी किससे क्या करूं ||
कानून का खौफ भी सबको नहीं होता ,
मुर्दा हुए वकील ,,बिकता मिला न्याय , क्या करूं.||
वो बेच रहा है गाय धन के हिसाब पर ,
हर कोई मौकापरस्त मरा पड़ा ईमान, क्या करूं ||
कलदार को माईबाप बना बैठा इंसान ,
मोटा हुआ दलाल,भूखा मरता किसान, क्या करूं.||
कलम मानती नहीं चलने को परेशान .
झूठ सच पर सवार ,सहमी सी आवाज, क्या करूं ||
.———– विजयलक्ष्मी