कविता

आओ धरा का तापमान मात्र 2डिग्री कम करें |

सम्भालों जिंदगी बदल रही है..

प्रकृति को मारोगे तो तुम जीवित रह पाओगे क्या .?.
वृक्ष विहीन धरा न करो दोस्तों..
बिन वृक्षों के तो सोचो साँस भी ले पाओगे क्या .. ?
हरित बाना धरा का न नोचो ..
धरती को मिटा कर भला फिर तुम पाओगे क्या..?
वजूद धरणी का जरूरी है दोस्तों ..
अपने लिए भी प्रकृति तत्वों को न बचाओगे क्या ..?
क्या दे रहे हों अपनी वंश बेल को..
जीवन की जरूरत आक्सीजन भी दे पाओगे क्या ?

—–विजयलक्ष्मी

विजय लक्ष्मी

विजयलक्ष्मी , हरिद्वार से , माँ गंगा के पावन तट पर रहने का सौभाग्य प्राप्त हुआ हमे . कलम सबसे अच्छी दोस्त है , .