कविता

अश्क अनमोल मोती

अश्कों को न पानी समझो दिल की बात कहता है,
दुःख में तो बहता ही है खुशी में भी छलकता है।

अपने मन की भावों को प्रकट करने का जरिया है,
इसकी गहराई न माप सकोगे ये तो ऐसा दरिया।

कभी निकलकर दूर कर देता है हर मुस्किल को,
कभी टपक कमजोर कर देता है अपने दिल को।

आँखों में खुद को रोककर कभी दिलाता हिम्मत,
एक दिल ही जानता है इन आँसूओं की कीमत।

क्षणिक सुख के लिए इन अश्कों को मत बहाओ,
ये तो अनमोल मोती है आँखों से मत गिराओ।

-दीपिका कुमारी दीप्ति

दीपिका कुमारी दीप्ति

मैं दीपिका दीप्ति हूँ बैजनाथ यादव की नंदनी, मध्य वर्ग में जन्मी हूँ माँ है विन्ध्यावाशनी, पटना की निवासी हूँ पी.जी. की विधार्थी। लेखनी को मैंने बनाया अपना साथी ।। दीप जैसा जलकर तमस मिटाने का अरमान है, ईमानदारी और खुद्दारी ही अपनी पहचान है, चरित्र मेरी पूंजी है रचनाएँ मेरी थाती। लेखनी को मैंने बनाया अपना साथी।। दिल की बात स्याही में समेटती मेरी कलम, शब्दों का श्रृंगार कर बनाती है दुल्हन, तमन्ना है लेखनी मेरी पाये जग में ख्याति । लेखनी को मैंने बनाया अपना साथी ।।