कविता
सुनो
सब कुछ ना कुछ लौटा रहे।
तुम भी लौटा दो ना,
वो जज्बात जो तुम समझ नहीं पाये
वो बाते जो सुन कर भी अनजान बने रहे
वो लम्हे जो हमने साथ बिताये
वो ख़्वाब जो दोनों ने मिलकर बुने
वो एहसास जो दोनों ने महसूस किये
मेरे पास तो तुम्हारे सिवाये कुछ भी नहीं
क्या लौटाउ ?
तुम्हारी यादे बनी है जीने का सबब
कहते हो तो वो भी लौटा देंगे साँसों के साथ !!
— डॉली अग्रवाल