गीतिका/ग़ज़ल

खिल उठा गुलशन/गज़ल

खिल उठा गुलशन, गुलों में जान आई।
साल नूतन दे रहा सबको बधाई।

कह रहीं देखो, नवेली सूर्य किरणें
अब वरो आगत, विगत को दो विदाई।

साज़ ने संगीत छेड़ा, गीत झूमे
मन हुआ चन्दन, गज़ल भी गुनगुनाई।

जिन समीकरणों में उलझा साल बीता
शुभ घड़ी सरलीकरण की उनके आई।

काट दें इस बार वे बंधन जिन्होंने
रूढ़ियों से बाँध की थी बेहयाई।

स्वत्व अपने हाकिमों से कर लें हासिल
और जनता के हितों हित हो लड़ाई।

हों न बैरी अब बरी, सुन लो सपूतों
मौत के पिंजड़े में तड़पें आततायी।

ले शपथ कर लें हरिक सार्थक जतन से
दुर्दिनों का अंत, अंतर की सफाई।

कर बढ़ाकर नष्ट वे अवरोध कर दें
प्रगति-पथ पर जिनसे हमने चोट खाई।

साल नव अर्पित उन्हें हो आज मित्रों
भाग्य की ठोकर जिन्होंने, कल थी खाई।

जीत का सेहरा बँधे हर हार के सिर
वर्ष नूतन की यही असली कमाई।

कल्पना रामानी

*कल्पना रामानी

परिचय- नाम-कल्पना रामानी जन्म तिथि-६ जून १९५१ जन्म-स्थान उज्जैन (मध्य प्रदेश) वर्तमान निवास-नवी मुंबई शिक्षा-हाई स्कूल आत्म कथ्य- औपचारिक शिक्षा प्राप्त करने के बाद मेरे साहित्य प्रेम ने निरंतर पढ़ते रहने के अभ्यास में रखा। परिवार की देखभाल के व्यस्त समय से मुक्ति पाकर मेरा साहित्य प्रेम लेखन की ओर मुड़ा और कंप्यूटर से जुड़ने के बाद मेरी काव्य कला को देश विदेश में पहचान और सराहना मिली । मेरी गीत, गजल, दोहे कुण्डलिया आदि छंद-रचनाओं में विशेष रुचि है और रचनाएँ पत्र पत्रिकाओं और अंतर्जाल पर प्रकाशित होती रहती हैं। वर्तमान में वेब की प्रतिष्ठित पत्रिका ‘अभिव्यक्ति-अनुभूति’ की उप संपादक। प्रकाशित कृतियाँ- नवगीत संग्रह “हौसलों के पंख”।(पूर्णिमा जी द्वारा नवांकुर पुरस्कार व सम्मान प्राप्त) एक गज़ल तथा गीत-नवगीत संग्रह प्रकाशनाधीन। ईमेल- [email protected]

One thought on “खिल उठा गुलशन/गज़ल

  • विभा रानी श्रीवास्तव

    अति सुंदर रचना

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