गीत/नवगीत

गीत: “दिलवाले” को फ्लॉप करो

माना लोग कहेंगे मुझसे सोच कलम की छोटी है,

भड़काऊ बाते लिखती है, नीयत भी कुछ खोटी है,
माना बुद्धिजीवियों को मेरी बातें खल जाएँगीं,
माना ख़ान चहेतों की सारी आंतें जल जाँएगीं,
जिसकी जो भी सोच रहे, परवाह नहीं करने वाला,
मैं पाखंडी के नाटक पर वाह नहीं करने वाला
पड़ी आंच पर रोटी जैसा फूल नहीं मैं सकता हूँ,
शहरुख खां के उस बयान को भूल नहीं मैं सकता हूँ,
जिसको दिन का प्रखर उजाला, घना अँधेरा लगता है,
जिसको भारतवर्ष यहाँ भूतों का डेरा लगता है,
सवा अरब की प्यार मुहब्बत जिसे पहेली लगती है
सब कुछ देने वाली माता भी सौतेली लगती है,
जिसकी “मन्नत” में जन्नत का नूर फलक से आता है
जो भारत की रोटी खाकर भारत से घबराता है
जो मुम्बई के हमले पर मदिरा पीकर बेहोश रहा
हेमराज की क़ुरबानी पर होठ सिये खामोश रहा
काश्मीर के ब्राह्मणों के कत्लों पर जो बोला ना,
जिसका ह्रदय सिक्ख दंगों पर दो पल को भी डोला ना
कभी नहीं दो शब्द कहे जिसने अफज़ल की फांसी पर
जो बंगले में मस्त पड़ा था, घायल जलती काशी पर,
भटकल मेमन के मुद्दे पर मुहं में लटके ताले हैं
जिसके हाफ़िज़ से गुंडे उस पार चाहने वाले हैं
जिसने मोदी के आते ही फेंक हमारी थाली दी,
डेढ़ साल में भूल गया सब, प्यार वफ़ा को गाली दी
उसके चेहरे का उतरे फर्जी नकाब, आवश्यक है
उसको उसकी भाषा में देना जवाब आवश्यक है,
होता क्या असहिष्णु, आज ये उसको बात बताना है
भारत को सराय समझे, उसको औकात बताना है
ये “गौरव चौहान” कहे, अब गद्दारों को साफ़ करो,
काले दिलवाले की पिक्चर, “दिलवाले” को फ्लॉप करो

— गौरव चौहान