कविता

गरीबी को डर बस भूख का है

बारिश भिगाती रही मगर गरीबी को डर बस भूख का है
गर्मी भी सताती रही मगर गरीबी को डर बस भूख का है
सर्दी कंपकंपाती रही मगर गरीबी को डर बस भूख का हैimages (5)
मौसम से अमीरी ही डरी, गरीबी को डर बस भूख का है

कोई सत्ता में आया,छाया गरीबी को डर बस भूख का है
किसी ने सिंहासन गवांया गरीबी को डर बस भूख का है
व्यस्त सब सियासी खेल में गरीबी को डर बस भूख का है
क्यों कोई पूछने नहीं आया गरीबी को डर बस भूख का है

बन गए कई स्कूल नए मगर गरीबी को डर बस भूख का है
कैसे आखिर बच्चे पढ़ें,बढ़ें गरीबी को डर बस भूख का है
करने लगे हैं काम नन्हें हाथ गरीबी को डर बस भूख का है
पेट,पीठ में मिला पानी पी लिया,गरीबी को डर बस भूख का है

महल बनते रहे,ठिकाना नहीं,गरीबी को डर बस भूख का है
फुटपाथ पर ही रह लेंगे कहीं,गरीबी को डर बस भूख का है
कुचल जायेगा कोई वाहन मगर गरीबी को डर बस भूख का है
अमीरी फिर जीत जायेगी मगर गरीबी को डर बस भूख का है

घृणा से देखती कई नज़रें मगर गरीबी को डर बस भूख का है
दया से देखती कई नज़रें मगर गरीबी को डर बस भूख का है
खुल गए पैबन्द कपड़ों के मगर गरीबी को डर बस भूख का है
हवस से देखती कई नज़रें मगर गरीबी को डर बस भूख का है

चलो भूखों को खिलाएं फिर न गरीबी को डर बस भूख का है
उदास चेहरे पे हँसी लाएं फिर न गरीबी को डर बस भूख का है
ऐ इंसान डरो तो सही उस रब से गरीबी को डर बस भूख का है
दिल को मिलेगा सुकून कि अब न गरीबी को डर बस भूख का है

वैभव दुबे

वैभव दुबे "विशेष"

मैं वैभव दुबे 'विशेष' कवितायेँ व कहानी लिखता हूँ मैं बी.एच.ई.एल. झाँसी में कार्यरत हूँ मैं झाँसी, बबीना में अनेक संगोष्ठी व सम्मेलन में अपना काव्य पाठ करता रहता हूँ।