माँ का सौदा
“ये विधर्मी गाय माता का माँस खा रहे हैं, तो हम क्या चुप बैठेंगे? जो हमारे लिये पूज्यनीय है उसकी हत्या करने की सज़ा हम देंगे ही|” उसकी आँखों में खून उतर आया था, आवाज़ में चीख के साथ-साथ अपने लोगों की भीड़ देखकर, बहुत जोश भी भरा हुआ था|
“ये लोग गाय को जहाँ से लेकर आते हैं, वो जड़ ही खत्म कर देनी चाहिये” सामने खड़ी भीड़ में से किसी ने कहा|
“गाय माता को बेचता कौन है?” तीसरे ने पूछा|
सब चुप हो गये, किसी के पास जवाब नहीं था|
“मुझे पता है…” एक वृद्ध व्यक्ति बोला|
सभी का प्रश्नवाचक चेहरा उसकी ओर घूम गया.. “हम में से वो सब दोषी हैं, जो सवेरे-सवेरे गाय का दूध दुह कर उसे घर से बाहर निकाल देते हैं, भटकने वाले आवारा-पशु को तो कोई भी उठा …..”
बात ख़त्म होने से पहले ही भीड़ में किसी ने उसे धक्का दे दिया|
— चंद्रेश कुमार छतलानी