ग़ज़ल : आशियाने से मिले…
गुनगुनाने से मिले कुछ मुस्कुराने से मिले.
जाने कितने गीत दिल पर चोट खाने से मिले.
फेसबुक पर दोस्तों की इक बड़ी फेहरिस्त है,
सोचिये पर दोस्त कितने इस ठिकाने से मिले.
जाने क्यों हमसे न मिलते आजकल वो लोग भी,
जो कि हमसे मिलके ही सारे ज़माने से मिले.
मिलने वालों में अधिकतर तो मिले मतलब से ही,
इस बहाने से कभी कुछ उस बहाने से मिले.
अब हज़ारों खर्च करके वो खुशी के पल कहाँ,
जो कि बचपन में हमें बस चार आने से मिले.
शायरी की डायरी सँग शाल-मोमेन्टो कई,
एक शायर जब मरा तो आशियाने से मिले.
— डाॅ. कमलेश द्विवेदी
मो.09415474674
बहुत शानदार गजल, डा साहब !